पूर्वोत्तर राज्यों में क्यों खिला कमल ?

देश के 19 राज्यों में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी को पूर्वोत्तर के राज्यों में मिली जीत अचानक नहीं मिली है.यह गंभीर विचार विमर्श और कठोर मेहनत का प्रतिफल है.त्रिपुरा और नगालैंड में केसरिया पताका का लहराना बदलती हुई राजनीति का संकेत है.पूर्वोत्तर राज्यों में बीजेपी को सफलता मिलने के कारणों का विश्लेषण किया जाय तो पता चलेगा कि आखिर पूर्वोत्तर राज्यों में कमल क्यों खिला ?

सबसे पहला कारण कांग्रेस के प्रति अविश्वास होना है. 2014 के लोकसभा चुनावों से शुरू हुआ कांग्रेस की हार का सिलसिला लगातार जारी है . छोटी सफलताओं को छोड़ दें तो देश की सबसे पुरानी पार्टी पर लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है. पूर्वोत्तर के लोगों ने बीजेपी को बढ़त देकर भारत सरकार के प्रति विश्वास जताया है. इसके पीछे चीन का डर है.चीन की बढ़ती दखलअंदाजी से निपटने के लिए उनको भारत सरकार की सरपरस्ती जरुरी थी.म्यांमार और बांग्ला देश में अल्पसंख्यकों के साथ हुए अत्याचार से भयभीत हुए लोगों ने यह फैसला लिया.

भाजपा को त्रिपुरा जैसे राज्य में सफलता मिलना नए सियासी समीकरणों की ओर संकेत करता है.त्रिपुरा जैसे संवेदनशील राज्य में जहां बांग्लादेशी और आदिवासियों के बीच टकराव होता रहता है. भाजपा ने बांग्लादेशी खेमे पर अपनी पकड़ बनाई और ध्रुवीकरण किया .2016 में असम में मिली जीत के बादअसम में उसे हेमंत बिस्वा का साथ मिला. हेमंत के उत्तर पूर्वी राज्यों में सम्पर्क को भुनाया जिससे सीपीआई और टीएमसी के नेताओं ने बीजेपी की ओर रुख किया जिसका असर अब सामने है. भाजपा की जीत में पूर्वोत्तर के पिछड़ेपन का भी हाथ रहा .अस्पतालों के अलावा रोजगार के अन्य कोई विकल्प न होने के कारण ही अन्य राज्यों में इनकी संख्या बढ़ रही है.इसीलिए जनता ने नए विकल्प के रूप में भाजपा को एक मौका दिया, ताकि राज्य में ही रोजगार के साधन उपलब्ध हो सके.

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