ओह तो इसलिए धूप में काली पड़ जाती है त्वचा

सूरज की रोशनी में पड़ने से त्वचा पर दो तरह से इसका प्रभाव पड़ता है. एक जो तुरंत असर दिखाता है और दूसरा जो धीरे धीरे असर दिखाता है. तुरंत असर दिखाने का मतलब यह है कि सूरज के संपर्क में आने से त्वचा झट से अपना रंग बदल लेती है. ऐसा अकसर उन लोगों में दिखाई देता है जो गोरे होते हैं. हालांकि उनकी त्वचा काली नहीं होती. लेकिन जो लोग हल्के सांवले रंग के लोग होते हैं, उनकी त्वचा काली हो जाती है. 

अन्य कार्यविधि यानी प्रक्रिया को अंग्रेजी में ‘डिलेड टैनिंग’ कहा जाता है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह हमारी त्वचा पर धीरे धीरे सक्रिय होती है. इसे मेलानोजेनेसिस भी कहा जाता है. इसके तहत त्वचा ज्यादा मेलानिन रंगद्रव्य बनाती है. जितने ज्यादा मेलानिन बनते हैं, त्वचा का रंग उतना ही बदलता चला जाता है. यह क्रिया होने में समय लगता है. इसे सूरज की रोशनी के संपर्क में न आने से रोका जा सकत है.    जैसा कि यह स्पष्ट है कि सूरज की रोशनी के संपर्क में आने से मेलानिन प्रभावित होता है. लेकिन आपको बता दें कि सूरज की रोशनी मेलानिन को नहीं त्वचा को प्रभावित करती है. त्वचा की सुरक्षा हेतु मेलानिन सुरक्षा कवच की तरह सामने आ खड़ा होता है. इसी प्रक्रिया के तहत शरीर से कुछ रासायनिक तत्व निकलते हैं जो कि शरीर को अलर्ट करते हैं कि सूरज की रोशनी त्वच को प्रभावित कर रही है. अतः यह जरूरी है कि हम जितना हो सके कम सूरज की रोशनी में जाएं. अगर ऐसा न किया जाए तो कैंसर की आशंका में बढ़ोत्तरी हो सकती है.

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