एक बार भगवान विष्णु वैकुण्ठ लोक में लक्ष्मी जी के साथ विराजमान थे. उसी समय उच्चेः श्रवा नामक अश्व पर सवार होकर रेवंत का आगमन हुआ. उसकी सुंदरता की तुलना किसी अन्य अश्व से नहीं की जा सकती थी. अतः लक्ष्मी जी उस अश्व की सुंदरता को देखती रह गई. जब भगवान विष्णु ने लक्ष्मी को अश्व को देखते हुए पाया तो उन्होंने उनका ध्यान अश्व की ओर से हटाना चाहा, लेकिन लक्ष्मी जी तो अश्व को देखने में मगन थी. भगवान विष्णु द्वारा बार-बार झकझोरने पर भी लक्ष्मी जी का ध्यान अश्व पर से नहीं हटा तो भगवान विष्णु को क्रोध आ गया और उन्होंने को शाप देते हुए कहा- “तुम इस अश्व के सौंदर्य में इतनी खोई हो कि मेरे द्वारा बार-बार झकझोरने पर भी तुम्हारा ध्यान इसी में लगा रहा, अतः तुम अश्वी हो जाओ.” जब लक्ष्मी का ध्यान भंग हुआ तो वे क्षमा मांगती हुई समर्पित भाव से भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगी की मैं आपके बिना एक पल भी जीवित नहीं रह पाउंगी, अतः आप मुझ पर कृपा करे एवं अपना शाप वापस ले ले.” आगे की कहानी अगले भाग में -