कानपुर : सांसारिक जीवन से कब मोह भंग हो जाए और व्यक्ति कब वीतराग के पथ पर परमात्मा से मिलने निकल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता| ऐसी ही घटना कानपुर से आईआईटी करने वाले सम्पन्न परिवार के शिवरामदास के जीवन में घटी. पिता की इच्छा से 1982 में सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर कुछ साल सेना में नौकरी करने के बाद मिथ्या संसार में मन नहीं लगा तो श्री महंत बलदेवदास को अपना गुरु बना कर धूनी रमाई और 18 साल तपस्या कर साधु बन गए| बताया जा रहा है कि शिवरामदास जी महात्यागी शिविर के सबसे शिक्षित साधु हैं, विश्व कल्याण की कामना से सिंहस्थ उज्जैन आए शिवराम दास सिद्धवट क्षेत्र में पड़ाव डाले हुए हैं, उनका मानना है कि मर्यादित जीवन जीने से चरित्र बनेगा और चारित्रिक जीवन जीने से जीवन में आनंद रस घुलेगा|