मुसाफिरों के लिए शायरियां

1. आए ठहरे और रवाना हो गए, ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है.

2. अभी सफ़र में कोई मोड़ ही नहीं आया, निकल गया है ये चुप-चाप दास्तान से कौन.

3. अभी से शिकवा-ए-पस्त-ओ-बुलंद हम-सफ़रो, अभी तो राह बहुत साफ़ है अभी क्या है.

4. चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ, सफ़र अधूरा रहा आसमान ख़त्म हुआ.

5. एक सफ़र वो है जिस में, पाँव नहीं दिल दुखता है.

6. गो आबले हैं पाँव में फिर भी ऐ रहरवो, मंज़िल की जुस्तुजू है तो जारी रहे सफ़र.

7. इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई, हम न सोए रात थक कर सो गई.

8. कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है, कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ.

9. किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं, जब से चले हैं घर से मुसलसल सफ़र में हैं.

10. किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा.

11. मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया.

12. मैं अपने आप में गहरा उतर गया शायद, मिरे सफ़र से अलग हो गई रवानी मिरी.

13. मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर, सफ़र सफ़र है मिरा इंतिज़ार मत करना.

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