जानिए 'कर्पूर गौरम करुणावतारं', मंत्र का क्या है अर्थ और इससे जुड़े रोचक तथ्य

सनातन धर्म में कई मंत्रों का पाठ किया जाता है, प्रत्येक मंत्र का अपना महत्व होता है। इन मंत्रों के उच्चारण से ऊर्जा का प्रवाह पैदा होता है जिससे मन और शरीर दोनों को लाभ होता है। इन्हीं मंत्रों में से एक है 'कर्पूर गौरम करुणावतारं', जो भगवान शिव का प्रमुख मंत्र माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने मात्र से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। यह प्राचीन संस्कृत श्लोक, जिसे शिव यजुर मंत्र के रूप में भी जाना जाता है, यजुर्वेद में पाया जाता है, जो चार वेदों में से एक है। यह सबसे प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है और हर आरती के बाद इसका पाठ किया जाना चाहिए।

जब हम इस मंत्र का जाप करते हैं तो संपूर्ण मंत्र के रूप में 'कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्। सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि॥ इस मंत्र का अर्थ -

कर्पूरगौरं- कपूर के सामान सफ़ेद और शुद्ध 

करुणावतारं- चिन्ता और करुणा के अवतार हैं

संसारराम- ब्रह्मांड की सच्ची आत्मा

भुजगेंद्रहारम्- नागों की माला धारण किए हुए

सदावसंतम् ह्रदयारविन्दे- कमल के समान पवित्र हृदय में निवास करने वाले

भवं भवानीसहितं नमामि- जो भगवान शिव माता पार्वती समेत मेरे ह्रदय में निवास करते हैं, उन्हें प्रणाम है। 

सरल शब्दों में, इस मंत्र का अर्थ है भगवान शिव माता भवानी के साथ मेरे हृदय में निवास करने वाले को प्रणाम करना। यह इकाई कपूर की तरह सफेद है, करुणा का प्रतीक है, ब्रह्मांड के सार का प्रतिनिधित्व करती है और नागों का शासक है। मान्यता है कि शिव के इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को चमत्कारी लाभ मिलते हैं। कर्पूर गौरं करुणावतारं एक शिव मंत्र है जिसका वर्णन यजुर्वेद में किया गया है।

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