गौ-मांस गौ-मांस क्या करते हो?

दशों दिशाओ में फैलता गौ-मांस का बवंडर जिसे देखो वो गौ-मांस के पीछे पड़ा है न तो अर्थव्यवस्था की समझ है, न ग्रोथ रेट की अक्कल और न ही बढ़ते विकास में विज्ञान की प्रगति की बस न्याय की मूर्ति की तरह आखे छुपा कर बिना नहाये धोये परफ्यूम लगाये पीछे ही पड़े है | इन लोगो को कौन समझायें यदि गाये नहीं रही तो दूध बिलकुल बंद थोड़ी हो जायेगा भैसे तो है जो दस साल तक आराम से निकल देगी उसके बाद की क्या हमने बहुत प्रगति कर ली है कास्टिक सोड़े, यूरिया खाद व सफ़ेद सफेदे से चाये जितना दूध चुटकियो में बना डालेंगे | दूध से तो सिर्फ पैट भरता है व कुछ के घरो का चूल्हा जलता है पर नये वाले दूध से मन की तृष्णा, धन की प्यास, घृणा, लोभ, लालच, दिमांग में उठे अश्लील एवं अनैतिक विचारो से संतृप्ति प्राप्त होती है | अब आप ये तो समझ ही गये होंगे कि जितनी बीमारिया होगी उतन व्यापार चलेगा, हॉस्पिटल चलेगा, दवाईया बिकेगी, करोड़ो के वारे न्यारे होंगे व बीमार लोगो की सेवा से पुण्य प्रपात होगा जो भव सागर पार लगा देगा | 

आलू के स्टार्च, AC वाली लेबो में बने एस्सेंस, कीटनाशको से बने मावे की प्रतिवर्ष अरबो की मिठाईया चट कर जाते है दिवाली और प्रत्येक त्यौहार पर चाँदी तो क्या एलुमिनियम से बने वर्क लगाकर कइयों को बाटे जा रहे है फिर भी भेड़ चाल की तरह लगे पड़े है गायो को बचाने अरे! दूध नहीं होगा तो क्या फर्क पड़ेगा..... असली घी, माखन, दही, व खोया ही तो नहीं मिलेगा ...... गौ-माता की कसम आज की करीबन आधी आबादी को असली घी खिला दो दस्ते न लग जाये तो हमारा नाम अख़बार में छपवा के बदल देना ..... अभी अस्पताल जाने की नौबत आ रही है क्युकी शरीर चिल्ला पड़ता है ये तो नकली है रोज वाला मार्का का सिक्का लगा असली नहीं ............. हमने सेकड़ो रसायनो से बड़े जटिलता वाले फॉर्मूले के पेय बनाये है रोज हीरो - हीरोइनों से ठुमके लगवा टी वी पर करोड़ो खर्च करके बताते है क्यों ..... आपको डरने की जरुरत नहीं ...... संडास का टप भी जिससे जगमगा जाये वो आपके पैट में क्या-क्या पचा सकने की ताकत रखते है .... गाय के दूध में केसीन प्रोटीन बाहुल्य मात्रा में होता है, हडियो को मजबूत करने वाली कैल्शियम वाली ताकत व विटामिन डी और बी काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पर उससे कभी बढ़ते बच्चो की जरुरत कभी पूरी हुई है क्या आपने टी वी पर नहीं देखा ....... हमें अभी भी चॉकलेट, इलायची फवौर वाला पाउडर बच्चो को एक नहीं दो-दो चम्मच पिलाना पड़ता है अब महगाई के ज़माने में ..... डबल खर्चा आम आदमी कैसे बर्दास्त कर पायेगा | 

अमीरी - गरीबी के फासले को मिटाने का काम भी नहीं करने देते भगवान की मूर्तियों से ज्यादा उनके प्रसाद वाली मिठाईया ज्यादा महगी हो गई है 600 से 700 रुपये किलो यानि सिर्फ 1000 ग्राम में बिक रही है जो अगले दस सालो में 1500 से 2000 में बिकेगी ....... इस झगड़े की जड़ है "दूध" न मालूम कैसी कैसी रंग बिरंगी रसीले नमो माली हजारो प्रकार की रस रसीली मिठाईया बना डालता है, गाय एवं अन्य दुधारू जानवर पालने से लोग गरीब हो रहे है भले ही ये भारत की आबादी के 70 फीसदी किसानो में से 95 फीसदी को दूध के माध्यम से हजारो रुपये मासिक कमाई देते हो परन्तु डबल सेंचुरी वाली दालों व सिंगल सेंचुरी लगाने वाली सब्जियों के युग में एक इन्शान का पैट तो भरता नहीं जानवरो का कैसे भरेंगे ..... जो 15 - 20 गुना ज्यादा खाना वो भी शाकाहारी खा जाते है ..... इसलिए गाय भैस रहेगी नहीं तो लोगो को पर्याप्त भोजन मिल पायेगा व गरीबी और भुखमरी खत्म हो जायेगी | 

मन की भारत दूध उत्पादन में दुनिया के अंदर नंबर वन है जिसने 2013 में 132 मिलियन टन उत्पादन करा था जो वस्तुस्थिति बनी रही व ग्रोथ भी इसी दर से बढ़ा तो 2022 तक यह बढ़कर 200 मिलियन टन हो जायेगा ...... परन्तु लगातार धन के अभाव में किसानो के आत्महत्या करने से यह लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो रहा है ..... कम से कम मांस निर्यात में भारत का नंबर वन तमगा छीनने को क्यों लोग देश व अक्कल के दुश्मन बने पड़े है | घी, गौ-मूत्र, गोबर के हजारो फायदे हो सकते है पर लोग ये क्यों नहीं समझते की हमें विकसित देशो में शामिल होना है ...... रसोई गैस पाइप लाइन से पंहुचा रहे है तो गोबर के कंदो की जरुरत कहा है ये तो सिर्फ 6 करोड़ टन लकडियो को जलाने से बचाते है ..... विदेश बैंक से पैसा लोन लेकर उद्दारी के माध्यम से घर घर गाड़िया और बाइक बहुचाई जा रही है तो बैलगाड़ियों की जरुरत क्यों है | 

2004 -2005 में रेल में 511.2 करोड़ लोगो ने सफर किया जबकि बेलगाडी में 2044.8 करोड़ ने ..... सामान ढोने की बात कर ले तो ट्रेनों ने 55.7 करोड़ टन मॉल ढोया तो बैलगाड़ियों ने 278.5 करोड़ टन ..... अब हम कब तक किसानो को आत्महत्या करने देंगे उनके जीवन को भी उच्च उठाना है और गाय भेसो को हटवाना है | बेलो का क्या विज्ञानं को खुद कहती है 30 गायो पर एक बैल जन्म लेता है ..... ये तो अपने आप मिट जायेगे | आज 70 फीसदी किसानो के पास 2 एकड़ से भी काम जमीन है उप्पर से विकास व विदेश निवेश के लिए भूमि अधिग्रण करने की भारी चिंता ...... ऐसे में गाय भेस पालेगा तो उसके रहने की जगह कहा बचेगी | इसलिए इन्हे हटाना पड़ेगा, फसल चक्र और देशी खाद के चक्र में क्यों पड़े है जमीन की उर्वरकता से अर्थव्यवस्था के आंकड़े थोड़ी बढ़ते है उसके लिए तो सिर्फ अंग्रेजी ज्ञान ल लाइसेंस और खाद चाहिए ...... गौ-मूत्र में कीटनाशनक की क्षमता होती है | 

एक गाय के जीवन भर के पेशाब से 10 एकड़ की खड़ी फसल को कीड़ो से बचा सकते है व गोबर से 5 एकड़ जमीन की उर्वरक क्षमता परन्तु गाये भेसे बनी रही तो कितनी कंपनिया बर्बाद हो जायेगी, पूरी अर्थव्यवस्था की मंदी के दौर में बट्टा बैठ जायेगा .... लोग समझते क्यों नहीं ....... 20 गायो से एक साल में $58788 कमा सकते है यह तो आदर्श है क्यों की बायो-गैस, जैविक खाद, भण्डारण के लिए विदेशी निवेश आता कहा है ....... साल भर मेहनत करके सिर्फ विदेशी बैंको का ब्याज भरने से अच्छा एक बार गौ-मांस व मांस सप्लाई कर मामला ही खत्म क्यों न कर दे अब तो प्रचार भी जबरदत हो गया इसलिए दाम भी दमदार मिलेंगे | भारत में शिक्षा का स्तर बहुत निचे है इसलिए लोगो के समझ में अर्थशास्त्र नहीं आता ...... देश चलाना कोई गाय भैस चराने जैसा थोड़ी है | 

बुढ़ापे में इंसानी माँ-बाप को दर-दर की ठोकर खिलने की नई सभ्यता के अधिकांश ज्ञानी व विवेकशील गाय के मांस व अन्य जानवरो के मांस में अंतर का परम ज्ञान बाँट रहे है फिर भी लोग नहीं समझते की अन्नदाता कहलाने वाले किसान सरेआम आत्महत्या करता है तब दिल नहीं पसीजता तो गौ माता के नाम पर इंसानी बच्चो के पीछे पद इंसानी माताओ के जीवन बर्बाद कर देने से कोनसे शास्त्र की पूर्ति हो जायेगी व कितने लोग समझदार हो जायेगे ...... आकड़ो के ग्राफ तो यही कहते है गायो को काटकर उनका मांस खा जाओ, फिर भेसो का स्वाह और आगे एक एक करके सबका कल्याण ..... पहले अपना पैट भरना चाहिए .... शास्त्रो में झूठ थोड़ी ही लिखा है की भूखे पैट भजन नहीं होते ........अच्छा खाना, तंदरुस्त जीवन, भविष्य की चिंता सबका भला, दया, नैतिकता, इंसानियत, रिश्तो की मर्यादाये सब गिरते जा रहे और इन्शान जानवरो की भांति दो-चार नहीं गाड़ियों में 150 -200 ठूस के जाने लगे है तो फिर जानवरो की तरह मांस खाने में क्या हर्ज है ...... पहले भी तो खाते थे ......... इतनी सी बाँट लोगो के समझ में क्यों नहीं आती | इसके लिए आपस में हाथ-पैर व सर फोड़के ये क्यों साबित करने लग जाते है की उन्होंने भी मांस खाया इसलिए जानवरो वाली ही हरकत करेंगे....... 

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