SC द्वारा 'दागी' ठहराए गए 'डॉक्टर' पर ममता का भरोसा, बनाया कोरोना समिति का प्रमुख

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के 931 मामले दर्ज हुए हैं और 105 लोगों की जान जा चुकी है. पश्चिम बंगाल सबसे अधिक मृत्यु दर वाले राज्यों मे से एक है. महामारी से निपटने के लिए ममता सरकार ने अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों की सहायता लेते हुए कई समितियां बनाई हैं. राज्य में कोरोना वायरस से जंग की निगरानी करने वाले विशेषज्ञों में डॉ सुकुमार मुखर्जी को भी शामिल किया गया है.

बता दें कि डॉ मुखर्जी वेटरन मेडिकल प्रैक्टिशनर, रुमेटोलॉजिस्ट और इंटर्नल मेडिसिन स्पेशलिस्ट हैं. वो सीएम ममता बनर्जी के विश्वासपात्रों में शामिल हैं और तृणमूल सरकार की कोरोना वायरस संकट से निपटने में सहायता कर रहे हैं. डॉ मुखर्जी ने राज्य में स्वास्थ्य संकट को नियंत्रित करने वाली 12 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का नेतृत्व कर रहे हैं. राज्य के स्वास्थ्य विभाग के 26 मार्च 2020 के आधिकारिक नोट के अनुसार समिति ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल, आइसोलेशन, क्वरानटीन, टेस्टिंग पर सरकार को रणनीति तैयार करने के लिए सलाह देगी. इसके साथ ही यह समिति हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए भी सुझाव देगी.

इस वर्ष 6 अप्रैल को पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने विशेषज्ञों की एक वैश्विक टीम के गठन का ऐलान किया , जो बंगाल सरकार को कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए नीतिगत फैसले लेने में सहायता करेगी. राज्य सरकार के इस ग्लोबल एडवाइजरी बोर्ड में नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी के नेतृत्व में आठ सदस्यों को जगह दी गई हैं. डॉ सुकुमार मुखर्जी भी इस बोर्ड के एक सदस्य हैं. 

हालांकि, एक वजह है जिसको लेकर 83 वर्षीय डॉक्टर को शामिल किए जाने पर सवाल उठ रहे हैं. वो है लगभग 22 वर्ष पूर्व भारत में मेडिकल लापरवाही के सबसे कुख्यात मामलों में से एक में डॉ मुखर्जी का संलिप्त होना. और वो मामला है- 1998 में अनुराधा साहा की मौत. वर्ष 2013 में एक ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने डॉ मुखर्जी को कोलकाता के दो और डॉक्टरों के साथ अनुराधा साहा की मौत के लिए कसूरवार ठहराया था. 36 वर्षीय अनुराधा अमेरिका में रहने वाली मनोवैज्ञानिक थीं. सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित परिवार को मुआवजे के रूप में 11.5 करोड़ रुपये (ब्याज समेत) देने का फैसला सुनाया था, जो भारत के मेडिकल लीगल इतिहास में अभूतपूर्व था.

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