क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता... क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता तू छोड़ रहा है, तो ख़ता इसमें तेरी क्या हर शख़्स मेरा साथ, निभा भी नहीं सकता प्यासे रहे जाते हैं जमाने के सवालात किसके लिए ज़िन्दा हूँ, बता भी नहीं सकता. घर ढूँढ रहे हैं मेरा , रातों के पुजारी मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता वैसे तो एक आँसू ही बहा के मुझे ले जाए ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता. -वसीम बरेलवी