कांग्रेस और देश रह जाते हक्के-बक्के,यदि शिवराज ने ऐसा किया होता

मध्यप्रदेश में एक ओर तो मानसून धुँवाधार बनी हुई है, दूसरी ओर विधानसभा के मानसून सत्र को भी विपक्षी कांग्रेस ने हंगामेदार बनाया हुआ है | कांग्रेस ने पहले दिन से ही आक्रामक रुख अपनाया; यहाँ तक कि सत्र की पहली औपचारिकता यानि श्रद्धांजलि देने के कार्यक्रम से ही अपनी टेढ़ी भंगिमा का प्रदर्शन शुरू कर दिया | लेकिन सत्ता-पक्ष ने भी सहिष्णुता और परिक्वता के बजाय उनसे अधिक आक्रामकता प्रदर्शित करते हुए, सदन को गंभीर संवाद के स्थान के बजाय एक अखाड़े जैसा बना दिया | यहाँ तक कि कुछ भाजपा विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के साथ धक्का-मुक्की की और बताया गया है कि किसी ने तो उनके सीने पर मुक्का ही मार दिया | जिससे उन्हें सीने में दर्द उठा और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा | व्यापम कांड में शिवराज का कोई दोष है या नहीं ? और अब तक के घटनाक्रम में भाजपा व कांग्रेस में से कौन, कितना, कहाँ-कहाँ सही या गलत रहा ? ऐसे प्रश्न अलग-अलग विस्तृत चर्चा के विषय है |

इन्हें छोड़कर जरा हम पक्ष और विपक्ष के आपसी व्यवहार के विषय पर भी ध्यान दें | फ़िलहाल हो यह रहा है, कि विभिन्न राजनैतिक दल संसद या विधानसभाओं में पहलवानों की प्रतिद्वंद्वी टीमों की तरह व्यवहार कर रहे हैं | इसलिए लोकतंत्र के मूल भाव और संविधान के आधारभूत सिद्धांत, सभी की घोर उपेक्षा हो रही हैं | लोकतंत्र की मूल अवधारणा यह हैं कि, हर सांसद व विधायक (और पार्षद, पंच आदि ) किसी राजनैतक दल के सदस्य होने से पहले जनता के प्रतिनिधि हैं और उनकी प्रतिबद्धता दल से पहले संविधान और जनता के प्रति हैं | लेकिन दुर्भाग्य यह हैं कि, हमारे जन-प्रतिनिधि जनता के बजाय अपने दल व उसके नेता के प्रति ही अधिक समर्पण दिखाते हैं | वे संसद, विधानसभा आदि पवित्र स्थानों को मुद्दों पर विचार-विमर्श के बजाय दलों की हर मुद्दों पर हार-जीत का अखाडा समझते हैं | सत्र के दूसरे दिन जो हुआ, उस पर तो केवल अफसोस ही व्यक्त किया जा सकता है; पर पहले दिन ही सत्र की कुछ अच्छे माहौल में शुरुआत हुई होती तो शायद यह नहीं हुआ होता |

पहले दिन सबसे पहले कुछ दिवंगत प्रमुख लोगों को श्रद्धांजलि दी गई | श्रद्धांजलियों के साथ-साथ कुछ प्रमुख दुर्घटनाओं में हुई मौतों पर शोक व्यक्त करने की भी परंपरा है | कांग्रेस नेता चाहते थे कि, श्रद्धांजलियों के इस कार्यक्रम में उन लोगों को भी श्रद्धांजलि/ शोक-संवेदना दी जाये, जो किसी रूप में व्यापम कांड से जुड़े थे और जिनकी मौत घोटाले के उजागर होने के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी | यह तो स्पष्ट ही था कि कांग्रेस की मंशा इस तरह से व्यापम कांड को और अधिक सुर्खिया दिलाकर सरकार को नीचा दिखाने की थी | कांग्रेस ऐसा करेगी, इसका अंदाजा भाजपा के भी सभी राजनैतिक पंडितों को था | कांग्रेस ने ऐसा किया और उस पर सत्ता पक्ष के लोगों ने कड़े शब्दों में कहा कि कांग्रेस श्रद्धांजलि कार्यक्रम का भी अपने राजनितिक स्वार्थ के लिए उपयोग कर रही है | इस तरह पहले दिन ही तल्ख़-तीखी तकरार का माहौल बन गया |

अब जरा सोचे कि यदि शिवराज और भाजपा ने थोड़ा अलग हट के सोचा होता और दूसरी ही रणनीति अपनायी होती और खुद ही व्यापम कांड से जुड़े लोगों की मौत पर शोक-संवेदना व्यक्त करने का विचार कर लिया होता; तो क्या होता ? मेरी स्पष्ट मान्यता है कि इस एक कदम से सरकार को कई तरह से लाभ मिलता | सबसे पहले तो सरकार के इस अप्रत्याशित कदम से कांग्रेसियों की रणनीति फ़ैल हो जाती और वे हक्का-बक्का ही रह जाते | कांग्रेस ही क्या, सभी राजनितिक विश्लेषक और बुद्धिजीवी वर्ग जो इस घटना-क्रम को ध्यान से देख रहा है, वे भी हैरान रह जाते | कुछ लोग कहेंगे कि यह तो स्वीकार करने जैसा ही हो जाता कि ये सभी मौतें व्यापम से जुडी हुई हैं और इनकी मौत के पीछे व्यापम के दोषियों का हाथ है | नहीं, यह सोच गलत है; किसी भी मौत पर शोक-संवेदना जाहिर करने का ऐसा अर्थ नहीं निकलता है; और क्या अर्थ निकला जाये, यह तो शोक व्यक्त करने वाले व्यक्ति के प्रस्तुतीकरण के तरीके पर बहुत हद तक निर्भर करता है |

सरकार द्वारा इस बात से इंकार करने में अब कोई सार नहीं है, व्यापम कांड से सम्बद्ध रहे करीब 48 लोगों की संदिग्ध स्थितियों में मौत हुई है | यह पुरे प्रदेश के लिए एक दुखद बात है; इसलिए इस पर कांग्रेस ही क्यों आंदोलित या शोकाकुल दिखाई दे ? इस पर तो सरकार और उसके मुखिया को खुद ही आगे आना चाहिए और स्वयं गहरा शोक प्रकट करके अपनी संवेदनशीलता के साथ ही निष्पक्षता व निर्लिप्तता भी प्रकट करना चाहिए | यदि शिवराज सरकार ने ऐसा किया होता तो वह इन भावों को प्रकट करने में भी सफल होती और इस मुद्दे पर विपक्ष की आक्रामकता को भी कुछ ठंडा कर देती | इस मामले में शिवराज और उनकी पार्टी कह तो रही है कि सरकार को कुछ भी नहीं छुपाना है और वह हर तरह की जाँच के लिए तैयार है; साथ ही सभी दोषियों को दलगत भावना से ऊपर उठकर सजा भी दिलाना चाहती है; तो फिर सरकार को विपक्ष के तीखे तेवरों से खुद उत्तेजित होने की जरुरत ही नहीं है|

लेकिन सत्ता पक्ष ने निर्लिप्तता व शांतता दिखाने के बजाय घोर मानसिक विचलन एवं आक्रामकता दिखाकर खुद ही अपना पक्ष और विश्वसनीयता को कम कर लिया है | व्यापम कांड से जुड़े लोगों की मौत पर शोक व्यक्त करना तो एक प्रतीकात्मक कदम उठाने का मौका था; असल में यहाँ सत्ता-पक्ष के लिए सुझाव यही है कि उसे हर मौके पर निर्लिप्त व अविचलित / शांत दिखने की रणनीति अपनाना चाहिए | इसके तहत यह विकल्प भी अच्छा ही होता कि, सरकार व्यापम कांड से जुडी मौतों पर पहले से स्वयं शोक व्यक्त नहीं करके कांग्रेस के नेता - प्रतिपक्ष को ही शोक व्यक्त करने का मौका देती; और फिर खुले दिल से अपनी संवेदना, निष्पक्षता आदि जाहिर करते हुए उनके 'केवल शोक-संवेदना' का समर्थन करती | परन्तु, सरकार ने यह मौका खो दिया |

बल्कि, इसके विपरीत व्यवहार करके खुद को अधिक संदेहास्पद, असहिष्णु और डरा हुआ सा दिखा दिया है | अब भी मौका है; शिवराज और भाजपा को अपनी रणनीति बदलकर आक्रामकता छोड़ देना चाहिए और दूसरे दिन मंगलवार को हुई धक्का-मुक्की कि घटनाओं पर खेद व्यक्त करना चाहिए; कुछ इस तरह कि जिससे कांग्रेस पर भी दबाव पड़े कि वह भी आक्रामकता को कम करके विरोध के प्रजातान्त्रिक व सौम्य तरीके अपनाने के लिए प्रेरित व बाध्य हो |

हरिप्रकाश 'विसंत'

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