विसाल-ए-यार ताबीर नही होता

इश्क ज्यादा या कम नही होता या तो होता है या फीर नही होता.. ख्वाब आते हैं खुबसुरत लेकिन विसाल-ए-यार ताबीर नही होता.. शब-ओ-रोज़ उसका इंतजार करूं  वो है की मेरी तकदीर नही होता.. दिल का सौदा करने निकला है वो बाज़ार-ए-इश्क में मुझसा फकीर नही होता.. उसको ज़माने से छीन लेता मैं भी जमीर मेरा गर जंजीर नही होता.. किताब उसकी जहमतों पर लिख देता पर हमसा क्यूँ कोई "मीर" नही होता.. ना दवाओं से ना ही दुआओं से होती राहत यहाँ मेरे काबिल हकीम-ओ-पीर नही होता..!

Related News