विधि कासलीवाल द्वारा बनायी डॉक्यूमेंट्री में सैंड आर्ट के ज़रिये आचार्य विद्यासागर की ज़िंदगी की प्रस्तुति

लैंडमार्क फ़िल्म्स की विधि कासलीवाल ने भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक यानि जैन धर्म से जुड़ी एक कहानी को जीवंत कर दिया है. उन्होंने आचार्य विद्यासागर पर एक बायोग्राफ़िकल डॉक्यूमेंट्री बनायी है, जिसका नाम 'विद्योदय' है. 

अपनी विद्वत्ता, अपनी तमाम उपलब्धियों के लिए मशहूर और अपनी तपस्या के लिए जाने जानेवाले आचार्य विद्यासागर की हैसियत एक बेहद विद्वान दिगंबर जै‌न मुनि की रही है. ग़ौरतलब है कि 'विद्योदय' में आचार्य विद्यासागर के बचपन से लेकर उनके मुनि बनने तक और फिर उनके द्वारा हासिल की गयी 'आचार्य' की पदवी मिलने तक के सफ़र को एक बेहद रोचक अंदाज़ में सामने लाया गया है. उनके द्वारा दी गयी सीख और जैन समाज के साथ-साथ पूरे समाज को दिये उनके योगदान को सैंड आर्ट के ज़रिये बड़े ही दिचलस्प अंदाज़ में पेश किया गया है. 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त सैंड आर्टिस्ट फ़ातमीर मूरा द्वारा पेश की गयी कला महज आचार्य विद्यासागर के जीवन-चित्रों का प्रस्तुतिकरण नहीं है, बल्कि इसे बेहद ज़हीन और जज़्बाती तरीके से उकेरा गया है. उनके कलात्मक हाथों की थिरकन को देखकर लगता है मानो सुमधुर संगीत पर उनके हाथ बख़ूबी नाच रहे हों, जिसे देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो रहा हो.

एक अनोखे अंदाज़ में आचार्य विद्यासागर की जीवनी को इस डॉक्यूमेंट्री में प्रस्तुत करने के बाद डायरेक्टर विधि कासलीवाल ने कहा, "मुझे इस बात का अच्छी तरह से एहसास था कि आचार्यजी के बचपन और शुरुआती ज़िंदगी को पेश करना मेरे लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम साबित होगा. मैंने शुरुआत से तय कर रखा था कि उनकी ज़िंदगी को 'फ़्लैशबैक' को दर्शाने के लिए मैं एक्टर्स का कास्ट नहीं करुंगा. उनकी ज़िंदगी पर शोध करते हुए मुझे उनके सबसे चर्चित साहित्यिक कार्य 'मूक मति' के बारे में पता चला. इससे मुझे एक आइडिया आया - क्यों न आचार्यजी की ज़िंदगी के सफ़र को को सैंड आर्ट और तस्वीरों की शक्ल में पेश किया जाये. इसके बाद इस बेहद महत्वाकांक्षी काम को अमली जामा पहनाने के लिए एक परफ़ेक्ट आर्टिस्ट की तलाश शुरू हुई. आखिरकार हमने फ़ातमीर को चुना, जो इटली के फ़्लोरेंस शहर में रहते थे. फिर हमने इस असंभव से लगनेवाले काम को पूरा करने की ठानी, पूरी तरह से समर्पित होकर अच्छी तरह से दोतरफ़ा होमवर्क किया, जिसके लिए हमें साल का वक्त लगा. हमारा ये जुड़ाव एक बेहद हसीन अनुभव था, जो भौगोलिक हालातों, भाषा, समय, भिन्नता, संस्कृति और परंपरा के पार साबित हुआ. और अब जब फ़िल्म‌ पूरी तरह से बनकर तैयार है, तो हमें इस बात की बेहद ख़ुशी है कि हमारी मेहनत रंग लाई."

आचार्य विद्यासागर के जीवन के सभी पहलूओं को को बेहद करीने से उकेरने में कामयाब रहे फ़ातमीर ने कहा, "इसके बारे में मैंने दूर-दूर तक नहीं सोचा था. ये एक बहुत बड़ा कमिटमेंट था और ये मेरे सोच से परे था. फिर जाने क्या जादू हुआ, किसी ने इस असंभव से लगनेवाले काम को करने की ठानी, इसपर गहन अध्ययन किया और इस दुष्कर कार्य को कर दिखाया. इस फ़िल्म के लिए विधि कासलीवाल और लैंडमार्क फ़िल्म्स के साथ काम करना मेरे लिए ख़ुशी और गर्व की बात रही. इस फ़िल्म पर काम करना मेरे लिए एक ऐसी सुखद अनुभूति थी, जिसे मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था. मुझे मुम्बई में उनके स्टूडियोज़ में जाने और पूरी टीम से मिलने का मौक़ा मिला. इतना ही नहीं, उनकी उदारता से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि ये एक ऐसे लोगों का समूह है, जो अपने काम को जुनून की तरह अंजाम देता है और वो भी पूरे प्रोफ़ेशनलिज़्म के साथ. इनके साथ काम करने के बाद ही मुझे भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में बहुत कुछ जानने को‌ मिला. इस फ़िल्म ने मुझे प्रोफ़ेशनल के साथ साथ आधात्यामिक तौर पर भी विकसित होने का मौक़ा दिया."

'विद्योदय' एक फ़लसफ़े के तौर पर जैन धर्म के विभिन्न पहलूओं को भी उजागर करता है. इसके अलावा, इस डॉक्यूमेंट्री के ज़रिये जैन मुनियों के अतिसाधारण मगर उच्च जीवन, उनके द्वारा दी जानेवाली सीख - ख़ासकर सभी जीवों को जीने के अधिकार और अहिंसा के बारे में भी बताया गया है.

 

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