रोजगारों का खुला विशाल क्षेत्र : द्वितीय मेक इन इंडिया

(स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया और मुद्रा बैंक का युवाओं के लिए अर्थ - II)

द्वितीय संदेश: मेक इन इंडिया का    

इस लेख श्रंखला के प्रथम अंक में हमने सरकार के ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रम की विस्तृत चर्चा करके उसका युवाओं के लिए अर्थ और महत्व बताया था । अब इस दूसरे अंक में हम ‘मेक इन इंडिया’ को इसी तरह से युवाओं को केंद्र में रखकर समझेंगे ।

मेक इन इंडिया:

इस नाम से तो बस यही जाहीर होता है कि सरकार निवेशको को, खासकर विदेशी निवेशकों को आह्वान कर रही है कि ‘आये और भारत में बनायेँ’ परंतु इस कार्यक्रम का अभिप्राय कुछ अलग और व्यापक भी है । इसे केवल कार्यक्रम न कहें बल्कि एक अभियान कहें तो बेहतर होगा । इसका मुख्य फोकस है ‘भारत के निर्माण क्षेत्र (मनुफ़ेक्चरिंग सैक्टर) को तेजी से बढ़ावा देना’, चाहे वह विदेशी निवेश के जरिये हो या देशी कंपनियों के जरिये या फिर MSME (सूक्ष्म, लघु व मध्यम इकाइयों के जरिये)। सच पूछे तो, यहाँ जो तीसरा जरिया है अर्थात MSME इकाइयां, वे ही इस अभियान में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हुए योगदान देने वाली है और वे ही सबसे ज्यादा रोजगार भी देंगी । ये इकाइयां ही देश में सबसे अधिक कपड़ा, गार्मेंट्स, साबुन, मसाले व अन्य खाद्य, इलैक्ट्रिकल व इलेक्ट्रोनिक समान, आदि बनाती हैं । आज भी देश के निर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक योगदान इन्हीं कुटीर, छोटी या बीचोली इकाइयों का ही होता है और सर्वाधिक किफ़ायती (Efficient) रोज़गार भी ये ही उपलब्ध करा रही हैं । इसलिये यह स्पष्ट होना जरूरी है कि ‘मेक इन इंडिया’ उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भी है ।

दूसरी बात समझने की यह है कि आज हमारी अर्थव्यवस्था में निर्माण क्षेत्र की प्रगति अत्यंत ही महत्वपूर्ण है, खासकर रोज़गार की दृष्टि से । कृषि क्षेत्र की कुल आय कम (मात्र 14%) है और उस पर आधारित लोगों की संख्या बहुत अधिक (60% से भी अधिक) है, इसलिये अब हमें कृषि पर निर्भर लोगों को कम करना होगा और इसका सबसे अच्छा विकल्प ‘निर्माण क्षेत्र’ ही हो सकता है । क्योंकि इसकी तुलना में सेवा क्षेत्र (Service sector) अधिक पूंजी में कम रोजगार सृजित करता है और अब वह पहले की तरह अधिक लोगों को रोज़गार नहीं दे सकता है । इसलिए अब तय है कि सबसे अधिक रोजगार के अवसर निर्माण क्षेत्र में ही है ।

तीसरी बात यह कि, निर्माण क्षेत्र में यदि कोई भी इकाई लगती है, भले ही वह विदेशी पूंजी से लगे, भारतीय कंपनी लगाए या कोई एमएसएमई शुरू हो हर स्थिति में उनमें रोज़गार स्थानीय युवाओं को ही सबसे पहले मिलता है । जब उद्योग लगाने वाले को जैसे लोग चाहिए वैसे स्थानीय स्तर पर नहीं मिलते तो वह देश में ही अन्य स्थानों से कर्मचारी लाता है । विदेशी कंपनियों में भी नगण्य लोग ही विदेशी हो सकते है । इसलिये ‘मेक इन इंडिया’ का युवा बेरोजगारों के लिए सबसे खास मतलब है - हर वर्ष लाखों रोज़गार ।

चौथी बात समझना युवाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण है । वह यह कि निर्माण क्षेत्र की वृद्धि के कारण जो रोज़गार बढ़ेंगे वे अधिकतर कौशल या हुनर आधारित जॉब्स होंगें । अकुशल श्रमिकों के लिए भी काम तो बढ़ेंगे, लेकिन वे कम वेतन वाले होंगे और अधिकतर स्थायी नहीं होंगे । अधिकतर मामलों में स्कूली शिक्षा की भी उपयोगिता होगी, परंतु कॉलेज की डिग्रियों का कुछ खास महत्व नहीं होगा । आपके हुनर संबंधी प्रशिक्षण का या अनुभव का ही सबसे अधिक महत्व होगा । इसलिये यहाँ फिर से उस बात को याद कर लेना चाहिए, जिसे हमने पहले पहले अंक में लिखा है । वह यह कि यदि आप निम्न या माध्यम वर्ग से हैं और डिस्टिंक्शन (75% से अधिक) अंकों वाले विद्यार्थी नहीं हैं और आपके पास कोई बड़ी विशेषता जैसे कलाकार या राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने की प्रतिभा नहीं है; तो आपको 10-वी/ 12-वी के बाद ही किसी न किसी हुनर को सीख लेने पर ध्यान देना चाहिए (हाँ, अपवाद हर बात के हो सकते है, जिन्हें पहले अंक में स्पष्ट किया है )। चूँकि, आपका हुनर ही आपकी विशेषता बनेगा, उससे ही आपको रोज़गार भी मिलेगा और ‘कदर’ यानि सम्मान भी मिलेगा । अब हम सबको “हुनर है, तो कदर है” इन शब्दों की सच्चाई का पूरा अहसास हो जाना चाहिये ।     

पाँचवी बात भी उतनी ही अधिक महत्वपूर्ण है । वह यह कि, जिन युवाओं में थोड़े उद्ध्यमिता के गुण है या जो नौकरी के बजाय अपने स्तर पर कोई स्व-रोज़गार करना चाहते है अथवा खुद MSME शुरू करना चाहते हैं; तो सरकार अब पूरे दिल से उनकी भी मदद करने के लिए तत्पर है । युवा ‘स्किल इंडिया’ अभियान के तहत कोई कौशल सीखकर उस पर आधारित इकाई भी शुरू कर सकते हैं । NSDC द्वारा जिन 204 ‘जॉब रोल्स’ की सूची बनाई गयी है, उन्हें देखेंगे तो आप पायेंगे कि उनमें से अधिकांश से आप नौकरी भी पा सकते है और अपना स्व-रोज़गार भी शुरू कर सकते हैं । क्या करना है, यह आपकी अपनी रुचि और मनोवृत्ति पर निर्भर करता है । यदि आपमें समयानुसार निर्णय करने की, कुछ जोखिम उठाने की, व्यवसाय प्रबंधन की, टीम के नेत्रत्व की और विभिन्न लोगों से प्रभावी संवाद की क्षमता एवं प्रवृत्ति है, तो आपको स्व-रोज़गार को चुनना चाहिए और अपने साथ अन्य लोगों को भी रोज़गार देने वाली छोटी-बड़ी निर्माण इकाई/ फेक्ट्री/ वर्क-शॉप/ रिपेयरिंग सेंटर/ सहायक उद्योग, आदि शुरू करना चाहिए ।

अंतिम बात वैसे तो सामान्य समझ वाली ही है, फिर भी उसे यहाँ उल्लेख कर देना उचित ही होगा; क्योंकि हो सकता है कि इतनी बातों में आप यह सामान्य समझ वाली बात ही भूल जाये । वह यह कि, जब ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत बहुत सारी बड़ी (large), मध्यम (medium), लघु (small) और सूक्ष्म (micro) इकाइयां लगेंगी । तो कई प्रकार से रोजगार बढ़ेंगे । एक तो इन इकाइयों में प्रत्यक्ष नौकरियाँ मिलेंगी; दूसरे, उनसे जुड़े हुए व्यवसायों में (जैसे इनके लिए कच्चे माल की आपूर्ति, पैकिंग, मार्केटिंग, विज्ञापन, परिवहन, मैंटेनेंस, आदि से जुड़े काम) में बढ़ोतरी होगी; तीसरे, इनके सहायक उद्योगो व वैकल्पिक उत्पादों की मांग में भी वृद्धि होगी, जिससे तुलनात्मक रूप से छोटी इकाईयों की स्थापना के अवसर भी बढ़ेंगे । इसलिये ‘मेक इन इंडिया’ कोई ‘ढेरों रिक्तियों की विज्ञप्ति’ नहीं है, बल्कि यह तो “रोजगारों की एक बड़ी सरिता के अब अधिक वेग से बहने का नाद” है ।              

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