वही गुलदस्ता दहलीज़-ए-खिजाँ पर छोड़ देना था

अब इस सदा कहानी को नया एक मोड़ देना था, ज़रा सी बात पर अहद-ए-वफ़ा ही तोड़ देना था, महकता था बदन हर वक़्त जिस के लम्स-ए-खुशबू से, वही गुलदस्ता दहलीज़-ए-खिजाँ पर छोड़ देना था।

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