उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए, चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए ! मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ, कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए ! अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर, मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए ! समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको, हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए ! मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा, परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए ! उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए !

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