उसे फरियाद कहते हैं

जिसे चस्पा किये रहते हम,  दिल की दीवार पर,  जिससे गुफ्तगू तन्हाई में  हम करते रहते हैं..!  उसे ही नाम दे करके,कोई फिर एक अजीब सा,  उसे अपना अजीज कह कर उसे याद करते हैं..!! जिसे हम जानते हैं ये कभी पूरी नहीं होगी,  उसे ही माँगने का सिर्फ झूंठा ढोंग करते हैं..!  जरूरत है नहीं जिसकी,जरुरी भी नहीं होगी,  उसी को हम दुआ कहते,उसे फरियाद कहते हैं..!! नज़र न काम करती है,  कमर न साथ देती है,  पके बालों से उनकी उम्र  उनको मात देती है..!  जो जि्न्दगी में कुछ अजूबा करके गुजरते हैं,  लगा तसवीर हम उनकी,उन्हें उस्ताद कहते हैं..!! खुदा भी साथ में जिनके,  नहीं इंसाफ करता है,  लिखा तक़दीर में उनके,  नहीं कुछ साफ होता है..!  उठाकर सर नहीं चलते,बहुत मजबूर होते है,  उन्हीं को बेसहारा करके हम,बरबाद करते हैं..!! बसी दिख जाती जो बस्ती,  उसे बस नाम देतें हैं.  नहीं जिसको बसाते हैं,  उसे अपना बताते हैं..!  हमें मालूम ये बस्ती, कभी "वीरान" न होगी,  जो गुलज़ार दिख जाये,उसे आबाद कहते हैं..!! 

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