रामसेतु के अस्तित्व की अमेरिकी वैज्ञानिकों ने की पुष्टि

नई दिल्ली : इस खबर से उन राम भक्तों की बांछे खिल जाएंगी जो तत्कालीन यूपीए -1 सरकार के कार्यकाल के दौरान रामसेतु को लेकर संघर्ष कर रहे थे कि यह त्रेता युग की देन है. अब उनके दावे के प्रति अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि कर दी है कि प्राचीन काल में राम सेतु का अस्तित्व था और यह मानव निर्मित था.

उल्लेखनीय है कि भारत और श्रीलंका के बीच स्थित प्राचीन 'एडम्स ब्रिज' यानी राम सेतु मानवों ने ही बनाया था. अब इसे विश्व के वैज्ञानिक भी मानने को मजबूर हो गए हैं.अमेरिकी पुरातत्ववेत्ताओं ने विज्ञान चैनल डिस्कवरी के एक शो के प्रोमो में यह जानकारी दी है. यह शोध अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थवेस्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो और सर्दन ओरीगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है.

बता दें कि भारत के रामेश्वरम के पास स्थित द्वीप पमबन और श्रीलंका के द्वीप मन्नार के बीच 50 किलोमीटर लम्बे इस अद्भुत पुल को कहीं और से लाए पत्थरों से बनाए जाने को मंजूर किया गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि सैटेलाइट में नजर आने वाले छिछले या सपाट चूना पत्थर हैं. 83 किलोमीटर लंबे गहरे इस जल क्षेत्र में चूना पत्थर की चट्टानों के नेटवर्क को मानव निर्मित माना है.यही नहीं पुल पर बिछाए गए विशाल चूना पत्थर कतई प्रकृति की देन नहीं हैं. यह कहीं और से लाए गए हैं. इस पुल की चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं, जबकि उस पर बिछी बालू की परत को चार हजार साल पुरानी माना है.

आपको इस जानकारी से भी अवगत करा दें कि केंद्र की तत्कालीन यूपीए-1 सरकार के समय रामसेतु के अस्तित्व पर ही संकट आ गया था.सेतुसमुद्रम नहर परियोजना के कारण मनमोहन सिंह की यूपीए-1 सरकार ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर दावा किया था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि रामसेतु कोई पूज्यनीय स्थल है. साथ ही इस सेतु को तोड़ने की भी अनुमति मांगी गई थी. तब इसका  विरोध हुआ था .कड़ी आलोचना के बाद आखिर सरकार को वह हलफनामा वापस लेना पड़ा था.

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