उनकी याद ताजा करतें हैं

उनकी याद ताजा करतें हैं सूखे गुलाब मैं जब कभी खोलता हूँ पुरानी किताब मेरे तन्हा कमरे में गुजरे हुए पल महकते हैं खिड़की से नजर आता है जब वो महताब मैं दिन में बनाता हूँ जो ख्यालों के महल रात में उन्हें बहा देता हूँ आंसुओं के सैलाब में उसके बारे में कुछ कह सकूँ मेरी मजाल नहीं कह सकूँ उसको इतना कि उसका कोई जबाब नहीं उसने जीते जी न आने की कसम खाई है मर के देखूं कहीं आ जाये जनाजे में जनाब छत पर कोई नहीं और रात अँधेरी है कोई देखने वाला नहीं है उलट दो अपना नकाब

Related News