वो गुजरा जमाना आज भी कभी याद आ जाता है, ऐसा भी नही कि हमें कोई आधुनिक संसाधनों से परहेज है या हम उनका उपयोग करना नहीं चाहते या इन संसाधनों को बुरा मानते है, लेकिन..... हमें कभी भी जानवरों की तरह किताबों को बोझ की तरह ढोकर स्कूल नही ले जाना पड़ा हमारें माता- पिता को हमारी पढाई को लेकर कभी भी अपने काम काज आगे पीछे नही करने पड़ते थे स्कूल के बाद हम देर सूरज डूबने तक अपने मोहल्ले में दोस्तों के साथ जी भर कर खेलते थे हम अपने सच्चे और पक्के दोस्तों के साथ खेलते थे, न की नेट फ्रेंड्स के साथ जब भी हम प्यासे होते थे तो नल से पानी पीना भी शुद्ध होता था और हमने पीने के लिए कभी बॉटल का पानी नही ढूँढा हम कभी भी चार लोग गन्ने का रस उसी गिलास से ही पी करके भी बीमार नही पड़े हम एक प्लेट मिठाई और रोज चावल खाकर भी पहले कभी मोटे नही हुए नंगे पैर घूमने के बाद भी हमारे पैरों को कभी कुछ नही होता था हमें स्वस्थ रहने के लिए कभी भी अतिरिक्त फ़ूड सप्लीमेंट नही लेने पड़ते थे हम कभी कभी अपने खिलौने खुद बना कर भी खेल लेते थे हम ज्यादातर अपने माता-पिता के साथ या दादा-दादी के पास ही रहे या कभी कभी अपने पड़ोस वाले के साथ भी रह लेते थे हम अक्सर 2-3 भाई बहन एक दूसरे के पुराने कपड़े पहनना भी शान समझते थे, तब पुराने कपडे नही पहनने वाली कोई भावना थी हम थोड़े से बीमार होने पर डॉक्टर के पास जल्दी से नहीं जाते थे, क्योंकि अक्सर इलाज घर में दादी या माँ ही कर दिया करती थी हमारे पास न तो मोबाइल, प्लेस्टेशन , क्सबोक्से , लैपटॉप, इंटरनेट, चैटिंग, या अन्य कोई सुविधा थी क्योंकि उस समय हमारे पास सच्चे दोस्त थे हम अपने दोस्तों के घर बिना बताये जाकर मजे करते थे और उनके साथ खाने और खेलने के मजे लेते थे। हमें कभी उन्हें पहले फ़ोन करके नही जाना पड़ा और अंतिम व सबसे महत्त्वपूर्ण की, शायद हम ही वो समझदार और अंतिम पीढ़ी है जो की अपने माता पिता की तो सुनते ही हैं.. और साथ ही वो पीढ़ी जो की अपने बच्चों की भी सुनते हैं।