मेक इन इंडिया के तहत ट्रैकिंग रडार के परीक्षण की तैयारी पूरी

श्रीहरिकोटा : भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अगले महीने अपने अत्याधुनिक, स्वदेशी मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रडार (एमओटीआर) के परीक्षण की तैयारियां पूरी कर ली है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के निदेशक एम.वाई.एस.प्रसाद ने बताया कि "एसडीएससी द्वारा विकसित तथा डिजाइन किए गए एमओटीआर का परीक्षण अगले महीने पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) रॉकेट के माध्यम से किया जाएगा।

औपचारिक रूप से इससे काम लेने में तीन माह का वक्त लगेगा।" यह रडार 800 किलोमीटर की दूरी पर स्थित 10 वस्तुओं को एक ही समय में ट्रैक कर सकता है। प्रसाद ने कहा, "245 करोड़ रुपये की लागत वाले एमओटीआर को 'मेक इन इंडिया' परियोजना का एक बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता है।" उनके मुताबिक, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसी तरह के रडार की कीमत 800 करोड़ रुपये है और ये मुख्य रूप से रक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं।

पूर्व परियोजना निदेशक वी.शेषगिरी राव ने कहा, "प्रणाली के संचालन तथा आंकड़ों के विश्लेषण के लिए सॉफ्टवेयर को देश में ही विकसित किया गया है, जिसकी लागत 100 करोड़ रुपये आई है।" प्रसाद ने कहा कि उनकी जानकारी के मुताबिक, दुनिया में केवल चयनित देशों के समूह के पास ही इस तरह का रडार बनाने की क्षमता है। प्रसाद ने कहा कि अमेरिका के रेथियॉन, नॉर्थरॉप ग्रूम्मैन, लॉकहिड मार्टिन, कनाडा-यूरोप के थेल्स, इजरायल के एल्टा तथा जापान के एनईसी के पास इस तरह की प्रणाली के निर्माण की क्षमता है।

वर्तमान में इसरो नासा द्वारा उपलब्ध कराए गए स्पेस डेबरिस डेटा का इस्तेमाल करता है। एमओटीआर के काम करना शुरू करने के बाद इसरो को रियल टाइम आंकड़े मिलने शुरू हो जाएंगे। प्रसाद ने कहा, "इस परियोजना को साल 2012 में हरी झंडी मिली थी और इसे फरवरी 2015 तक पूरा करना था। इस लक्ष्य को हासिल कर लिया गया है।" रेडोम को छोड़कर बाकी सभी प्रणालियों का निर्माण स्वदेश में ही हुआ है। राव ने कहा कि इस रडार का वजन 35 टन, लंबाई 12 मीटर तथा ऊंचाई आठ मीटर है और यह विभिन्न दिशाओं में घूम सकता है।

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