टूट कर के बिखर ने वाले थे

ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे, टूट कर के बिखर ने वाले थे। जिनको हमने था पाक दिल समझा, उन्हीं लोगों के कर्म काले थे। पेड़ होंगे जवां तो देंगे फल, सोचकर के यही तो पाले थे। सबने भर पेट खा लिया खाना, माँ की थाली में कुछ निवाले थे। आज सब चिट्ठियां जला दीं वो, जिनमे यादें तेरी सँभाले थे। हाल दिल का सुना नही पाये, मुँह पे मजबूरियों के ताले थे।

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