तुम्हारा भी कोई मुख़्तार है

कहीं कोई भी ज़िम्मेदार है क्या  तुम्हारे मुल्क़ में सरकार है क्या यूं नंगे बदन आये हो कचहरी तुम्हारा भी कोई मुख़्तार है क्या जो घुंघरू पांव में औरत के बँधते जहाँ में उनसे वज़नी भार है क्या ये भूखे मंदिर-ओ-मस्जिद के बाहर इन्हें भी ज़ीस्त की दरकार है क्या ज़बां चुप है प' चेहरा बोलता है  हुआ तुम से कोई दो-चार है क्या बला की चौकसी चारों तरफ़ है  बताना कल कोई त्योहार है क्या ये नर्सिंग होम,य' कोठे डॉक्टरों के  कहो इन्सानियत बीमार है क्याa

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