तुम सागर की गहराई हो

रहूँ जमीं पर तो लगता है , तुम हिम-शैल की ऊँचाई हो..... . जब शैल फतह कर लुँ तो लगे ., तुम सागर की गहराई हो.... . सोचता हूँ हो जाऊँ दूर तुमसे ,मैं बिल्कुल तुम-सा ही... . पर कैसे दूर रहूं तुझसे , कि तुम मेरी परछाई हो..!!

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