तुम सबसे अच्छी लगती हो

कैसे कहूँ तुमसे , क्या मैं बताऊँ , क्यों तुम अच्छी लगती हो , कभी शर्माती , कभी मुस्कुराती , तुम सबसे अच्छी लगती हो ,

कभी मुझे समझाती हो और कभी खुद नासमझ बन जाती हो , जाने क्या है तुम में वो खूबी की तुम मुझे अपनी जैसी लगती हो ,

कभी गुस्से से लाल हो जाती , और पल भर में खुद है देती हो , तुम्हारी अदाओं का गज़ब है जादू तुम जादूगरनी लगती हो ,

एक पल में तुम माँ बन जाती , पल भर में बच्ची बन जाती हो , हर गन की तुम मलिका हो मुझे तुम बहुत ही अच्छी लगती हो ,

कभी कभी मुझे बातें तुम्हारी कुछ दीवानो सी लगती हैं , मासूमियत में डूबके अपने कभी तुम बुद्धू जैसी लगती हो ,

कभी कभी तुम पागल बन जाती और मुझको ही पागल कहती हो , तुम्हारे उस पागलपन में भी तुम मुझे बहुत ही अच्छी लगती हो ,

कभी कभी मुझे पूछती हो तुम की कैसी मुझे तुम लगती हो , तुम्हारी कसम मैं खाके हूँ कहता तुम सबसे अच्छी लगती हो ,

तुमसे प्यारी मुस्कान तुम्हारी , कोई परी मुझे तुम लगती हो , सागर से गहरी आँखें तुम्हारी , तुम बहुत ही प्यारी लगती हो ,

कैसे तुम्हे मैं ये समझों , क्यों तुम अच्छी लगती हो , कभी शर्माती , कभी मुस्कुराती , तुम सबसे अच्छी लगती हो 

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