दर्द होने पर जोर जोर से चिल्लाते है पेड़-पौधे, लेकिन नहीं सुन पाते इंसान

आपको गार्डनिंग का शौक हैं और खूब पौधे लगा रखे हों तो अच्छी बात है, लेकिन यदि आप उनका ध्यान न रख रहे हों तो गार्डन में कुछ अलग ही चल रहा होगा। पानी की कमी, या तेज धूप से मुरझाते पौधे अल्ट्रासोनिक आवाज भी निकाल रहे है। ये एक तरह की चीख होती है, जो जख्मी या परेशान इंसान से मिलती-जुलती है। वैज्ञानिक जर्नल 'सेल' में गुरुवार को प्रकाशित हुई एक स्टडी में भी दवा भी कर दिया गया है।

साइलेंट नहीं हैं पेड़-पौधे: 'साउंड एमिटेड बाय प्लांट्स अंडर स्ट्रेस'- नाम से आई स्टडी में बोला है कि वैसे तो सारे ही पौधे अलग-अलग तरह की आवाजें भी निकाल रहे है। इन्हें समझकर ये जाना जा सकता है कि पौधा किस हालत में पल रहे है, वो खुश है या परेशान है। वैसे तो पौधों को अब तक साइलेंट कहा जाता है, लेकिन अब इस स्टडी के बाद एक नया सिरा निकलकर आया है, जो प्लांट किंगडम  की सहायता कर रहा है। 

इस तरह से हुआ अध्ययन: स्टडी के लिए टमाटर और तंबाकू के पौधों को ग्रीनहाउस में उगाया गया। जिसमे अलग-अलग पौधों को अलग तरह का ट्रीटमेंट भी मिल गया। किसी को पानी मिला, बढ़िया देखभाल  भी मिल गई है। वहीं कुछ पौधों को पानी नहीं दिया गया, और तराशते हुए उनकी पत्तियों को चोट पहुंचाई गई। इन पौधों में मिट्टी भी पूरी जांच के उपरांत डाली गई, इसमें ये पक्का किया गया कि मिट्टी में किसी तरह के जीव न हों, जो आवाज निकालते हों। साउंड को पकड़ने के लिए AI की सहायता ली गई। इस बीच पाया गया कि अलग हालात में पौधे अलग तरह की आवाजें भी निकालते है, जो खुशी में चहकने, या दर्द में चीखने की भी होती है। एक औसत पौधा एक घंटे में एक बार आवाज करता है, जबकि स्ट्रेस में आए पौधे 13 से 40 बार चटखने या चीखने जैसी आवाज निकालते हैं।

दो दिनों के भीतर ही मदद के लिए पुकारने लगते हैं: सेल में छपे पेपर में दावा किया गया कि जिन पौधों को रोजाना पानी की आवश्यकता होती है, अगर दो दिन भी उन्हें सींचा न जाए तो वे जोर-जोर  से रोने लग जाते है। ये आवाजें 5वे दिन बहुत तेज हो रहे है, जो आसपास के दूसरे पौधे भी सुनते और रिएक्शन देते हैं। उनकी पत्तियां उस कमजोर-सूखे पेड़ की तरफ झुकने लग जाती है। ये एक तरह से तसल्ली देने की तरह है। ठीक वैसे ही जैसे इंसान एक-दूसरे को देते हैं। 

मदद के लिए आगे आते हैं दूसरे जीव: पेड़ों की ये चीख उनकी केवल बिरादरी ही नहीं, दूसरे जीव-जंतुओं तक भी पहुंचती है, जैसे गिलहरी या चमगादड़ों, या चूहों तक। वे प्रयास करते हैं कि पौधों को थोड़ा आराम भी मिल पाए। इसके लिए प्रयास भी करते हैं। शोध में शामिल तेल अवीव यूनिवर्सिटी के बायोलॉजिस्ट लिहेच हेडेनी ने माना कि पौधों पर पलने वाली बहुत सी स्पीशीज उनकी सहायता करने की कोशिश भी कर रहे है, भले ही उसका असर हो, या न हो। ये आवाज किस तरह से निकलती है, जिसकी वजह से वैज्ञानिकों को भी स्पष्ट नहीं। हो सकता है कि डीहाइड्रेट हो रहे पौधे में पानी के चैंबर टूटने लगते हों, जिससे एयर बबल बनते हों और आवाज सुनाई देती हो। इस प्रोसेस को कैविटेशन बोलते हैं। लेकिन इसकी कुछ और वजह भी सकती है। 

हम क्यों नहीं सुन पाते आवाजें: इंसान अधिक से अधिक 20 किलो हर्ट्ज की आवाज सुन पाता। बचपन में ये आवृत्ति इस रेंज तक रहती है, लेकिन उम्र के साथ कम होने लग जाती है। 20 से ऊपर की आवृति को अल्ट्रासोनिक साउंड की श्रेणी में रखा जाता है। डीहाइड्रेशन का शिकार हो चुके पौधे 40 से 80 किलोहर्ट्ज की आवाजें निकालते हैं। ये हमारे सुन सकने के हिसाब से बहुत ऊंची आवृत्ति है इसलिए ही हमें सुनाई नहीं दे पाता। 

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