हेपेटाइटिस से कैसे करें बचाव

बच्चों की सेहत के प्रति सभी माता-पिता जागरूक होते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को यह मालूम होता है कि आजकल बच्चे भी बडी तादाद में हेपेटाइटिस के शिकार हो रहे हैं।  क्या होता है कारण हेपेटाइटिस लिवर से संबंधित बीमारी है। लिवर शरीर का वह महत्वपूर्ण भाग है,जो भोजन से मिलने वाले सभी पोषक तत्वों जैसे प्रोटीन, ग्लूकोज, विटमिन और मिनरल्स को अलग-अलग करके उन्हें शरीर के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाने का काम करता है। लिवर हमारे शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्व अमीनो एसिड का निर्माण करता है। यह शरीर में हार्मोन्स का संतुलन भी बनाए, रखता है। साथ ही शरीर से सभी विषैले पदार्थो को स्टूल और युरिन के माध्यम से शरीर से बाहर निकालता है। पूरे शरीर की मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया को लिवर ही निर्धारित करता है। इसमें लिवर में सूजन हो जाती है, इससे लिवर सही ढंग से काम करना बंद कर देता है। लिवर से अधिक मात्रा में एंजाइम्स निकलने शुरू होते हैं, शरीर में मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया सही ढंग से काम नहीं कर रही होती। शरीर के विषैले तत्व शरीर से बाहर नहीं निकल पाते, इस वजह से बच्चों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।  हेपेटाइटिस के प्रकार हेपेटाइटिस को दो भागों में बांटा जाता है। हेपेटाइटिस ए और बी। हेपेटाइटिस ए आम तौर पर हेपेटाइटिस ए वायरस या बैटीरिया के संक्रमण से होता है, जो आम तौर में खानपान के मामले में लापरवाही बरतने और सफाई का ध्यान नहीं रखने की वजह से होता है। हेपेटाइटिस बी - इस प्रकार का हेपेटाइटिस आमतौर पर रक्त के माध्यम से फैलता है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन या संक्रमित सूई के इस्तेमाल से बच्चे को यह बीमारी हो सकती है। इसके अलावा अगर गर्भावस्था के दौरान मां को यह बीमारी है तो इस बात की पूरी आशंका होती है कि बच्चे को भी यह बीमारी हो सकती है। इसके अलावा जिन बच्चों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उन्हें इन दोनों तरह के हेपेटाइटिस होने की आशंका अधिक रहती है। जिन बच्चों के कद और वजन के विकास की गति सामान्य बच्चों की तुलना में धीमी होती है, उन्हें भी हेपेटाइटिस होने का खतरा रहता है।  यह होते हैं लक्षण  हेपेटाइटिस के इन दोनों प्रकारों में सामान्यत: अनावश्यक थकान महसूस करना। सिर में दर्द और हलका बुखार। त्वचा और आंखों की रंगत का पीला पडऩा। पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द। पाचन संबंधी समस्या और लूज मोशन। त्वचा में जलन, खुजली और लाल रंग का निशान पडऩा। भूख न लगना और वजन में लगातार गिरावट। गंभीर स्थिति में जब हेपेटाइटिस के विषाणु मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं तो बच्चे को बेहोशी के दौरे भी पड़ सकते हैं।  बचाव के उपाय  खाने से पहले बच्चों को अच्छी तरह हाथ धोना सिखाएं। खाना बनाते समय भी सफाई का पूरा ध्यान दें और बासी भोजन इस्तेमाल न करें। जहां तक संभव हो पीने के लिए उबले हुए या फिल्टर्ड पानी का इस्तेमाल करें। फलों ओर सब्जियों को अच्छी तरह धोने के बाद इस्तेमाल करें योंकि इनके ऊपर जिन कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, वे लिवर के लिए नुकसानदेह होते हैं। बच्चे को नियमित रूप हेपेटाइटिस के टीके लगवाएं। वर्ष में दो बार शिशु रोग विशेषज्ञ से बच्चे का रुटीन चेकअप जरूर करवाएं और इस बात पर विशेष ध्यान दें कि बच्चे के कद और वजन का विकास सही ढंग से हो रहा है या नहीं।

 

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