ये दुनिया बड़ी मतलब की है

एक महानगर की सोसाइटी, पाँच अपार्टमेन्ट वह भी तीन मंजिल के कुल मिला कर एक सामान्य सी सोसाइटी थी। उसका वॉचमैन जगदीश उसकी पत्नी और उनका बेटा, यह स्टाफ था सुरक्षा के लिए। जगदीश जब रात की ड्यूटी करके सोता तो उसका आठ साल का बेटा टिनटिन गेट पर तैनात हो जाता। बीच बीच में किसी मेमसाब की आवाज सुन कर जाता और उनका कोई छोटा मोटा काम जैसे बाजार से ब्रेड लाना या कोई सब्जी खरीद कर लाना और बदले में उसे मिलता था उनके बच्चों के नाश्ते में बची हुई ब्रेड या कोई फल। दिन भर एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग भागता रहता था इसलिए उसका नाम पड़ गया टिनटिन एसप्रेस। यह सब उसकी एक सामान्य दिनचर्या बन चुकी थी।

एक दिन अचानक टिनटिन दिखाई नहीं दिया। सोसाइटी की सभी औरतों की परेशानी बढ़ती जा रही थी। आखिर टिनटिन कहाँ चला गया घर का बहुत सा काम रुका हुआ था। शाम को कुछ औरतें वॉचमैन के घर पहुंची और टिनटिन के बारे में मालूम किया, क्या हुआ उसको, वह ठीक तो है ना !

टिनटिन की माँ ने बताया की एक साहेब आये थे उन्होंने टिनटिन का नाम एक स्कूल में लिखा दिया है। वही उसके खाने पीने और फीस का इंतजाम करेंगे और टिनटिन भी खुश है। सभी औरतें जब घर से बाहर निकलीं तो उनके चेहरे पर खीझ और दिल में गालियाँ थी उस अनजान आदमी के लिए...

 

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