थिरक उठे प्रेम भरे गीत

दर्पण से चुरा लिया तेरे चेहरे का रूप याद मुझे आ रही फागुन की धूप महुआ के घने-घने पेड़ों के नीचे मिलते हैँ छिप-छिप कर आँखोँ को भीँचे खेतोँ मेँ खिल उठी पीली-पीली सरसोँ आज-कल आते-आते बीत गए बरसोँ सपनोँ मेँ लौट आए "प्राची" वो बचपन के मीत  होठोँ पर थिरक उठे प्रेम भरे गीत।।

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