आपका दिल छू लेगी ये शायरियां

चिराग़ घर का हो, महफिल का हो कि मंदिर का, हवा के पास कोई मसलहत नहीं होती - वसीम बरेलवी 

सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा, जिसे तलब थी उसी की तरफ़ नहीं देखा। - मंजर भोपाली 

बदनाम है जहां में ज़फ़र जिनके वास्ते, वो जानते नहीं कि ज़फ़र किसका नाम है।  - ज़फ़र 

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।  - अकबर इलाहाबादी 

हजार बार ज़माना उधर से गुजरा है, नयी-नयी से है कुछ तेरी रहगुजर फिर भी।  - फ़िराक़ गोरखपुरी 

जब भी चाहें इक नयी सूरत बना लेते हैं लोग, एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग। - क़तील शिफ़ाई 

दिल क्या मिलाओगे कि हमें आ गया यक़ीं, तुमसे तो ख़ाक में भी मिलाया न जाएगा।  - अज्ञात 

मैं परबतों से लड़ता रहा और चंद लोग,  गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए।  - राहत इंदौरी 

आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम, जाते रहे हम जान से, आते ही रहे तुम।  - नासिख 

कोई तदबीर भूलने की नहीं, याद आने के सौ बहाने हैं।  - अज्ञात 

जिस दर पे कभी जान की मांगी थी दुआएं, क़ातिल ने उसी दर पे जमायी है निगाहें।  - सुरेश जैन  नहीं जरूरी कि मर जाएं जां निसार तेरे, यही है मौत कि जीना हराम हो जाए।  - फ़ानी 

आह किस से कहें कि हम क्या थे सब यही देखते हैं क्या हैं हम।  - असर लखनवी

कहां आ के रुकने थे रास्ते कहां मोड़ था उसे भूल जा वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा।  - अमजद इस्लाम अमजद 

ख़ुदा जाने ये दुनिया जल्वा-गाह-ए-नाज़ है किस की हज़ारों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है मज्लिस की।  - अज्ञात 

ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहां हसरतों में शुमार होता है। - अनवर शऊर

तुम्हारा नाम किसी अजनबी के लब पर था ज़रा सी बात थी दिल को मगर लगी है बहुत।  - सादिक नसीम 

दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं बाज़ार से गुज़रा हूं ख़रीदार नहीं हूं।  - अकबर इलाहाबादी

बनाना चट्टानों के सीनों पे राह, मगर अपने माज़ी पे रखना निगाह।  - अली सरदार जाफ़री 

दोस्तों से हमने वो सदमे उठाए जान पर, दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा।  - मीर 

घर की इस दिशा में भूलकर भी न लगाएं तुलसी का पौधा, वरना भुगतना पड़ेगा भारी अंजाम

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