विश्व स्वास्थ्य दिवस : देश में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं अब भी हैं बीमार

आजादी के बाद के आंकड़ों के साथ तुलना करें तो भारत में स्वास्थ्य सेवा की तस्वीर बेहतर नजर आती है. लेकिन आबादी तेजी से बढ़ने की वजह से खासकर ग्रामीण इलाकों में तो अब भी डॉक्टरों और अस्पतालों की भारी कमी है. भारत में स्वास्थ्य उद्योग के वर्ष 2020 तक बढ़ कर 280 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंचने का अनुमान है. यह आंकड़े वर्ष 2005 के मुकाबले दस गुना ज्यादा है. बावजूद इसके इस क्षेत्र की तस्वीर अच्छी नहीं है.

ग्रामीण इलाकों में 70 फीसदी बच्चे हीमोग्लोबिन की कमी के शिकार हैं

आजादी के बाद के दशकों में देश ने विभिन्न क्षेत्रों में भले प्रगति की हो, इस दौरान अमीरों व गरीबों के बीच की खाई बढ़ी है. इसका असर स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है. अब भी ग्रामीण इलाकों में 70 फीसदी बच्चे हीमोग्लोबिन की कमी के शिकार हैं. गांवों में पीने के साफ पानी की सप्लाई नहीं होने की वजह से उन इलाकों में कुपोषण और डायरिया जैसी बीमारियां आम हैं.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्जरी, स्त्री रोग और शिशु रोग जैसे चिकित्सा के बुनियादी क्षेत्रों में 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है. ग्रामीण इलाकों में तो यह आंकड़ा 82 फीसदी तक है. 

देश में प्रति 893 व्यक्तियों पर महज एक डॉक्टर है

हाल के वर्षों में विदेश जाकर पढऩे वाले भारतीयों की तादाद भी बढ़ी है. चीन के बाद भारत से ही सबसे ज्यादा लोग पढ़ने के लिए विदेश जाते हैं. जहाँ एक तरफ भारत दुनिया के प्रमुख देशों को सबसे ज्यादा डॉक्टरों की आपूर्ति करता है तो वहीँ देश में प्रति 893 व्यक्तियों पर महज एक डॉक्टर है. इनमें एलोपैथिक के अलावा आयुर्वेद, यूनानी और हौम्योपैथ के डॉक्टर भी शामिल हैं. 

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