आज भले ही साइंस ने इतनी तरक्की कर ली हो कि वे आसानी से तमाम रोगों के वायरस और कीटाणु खोज निकालते हों. मगर हमेशा स्थितियां इतनी अच्छी नहीं थीं. लोग कई बीमारियों के इलाज के बगैर दम तोड़ देते थे. उसी दौर में उम्मीद के किरण के तौर पर जर्मन फिजिशियन व माइक्रोबायोलॉजिस्ट रॉबर्ट कोच उभरे थे. उनका निधन साल 1910 में 27 मई की तारीख को ही हुआ था. 1. साल 1905 मे उन्हें फिजियोलॉजी मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था. 2. उन्होंने माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में नई टेक्नोलॉजी और लेबोरेट्रीज के माध्यम से अहम योगदान दिया. 3. उन्होंने ट्यूबरकिलॉसिस, हैजा और एंथ्रेंक्स बीमारी की वजह बनने वाले कीटाणुओं के बारे में पूरी दुनिया को वाकिफ कराया. 4. उन्होंने कोट पोस्टुलेट्स बनाए. ये वो चार सिद्धांत थे जो माइक्रोऑर्गनिज्म को खास बीमारियों से जोड़ते थे. इन्हें आज मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी का गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है. 5. उन्होंने भारत में हैजा पर अध्ययन किया और पब्लिक हेल्थ और हाइजीन पर रिसर्च पब्लिश की.