बीजेपी के लिए इस जीत के मायने

गुजरात चुनाव में भले ही बीजेपी जीत गई मगर परिणाम बीजेपी के राज्य में वर्चस्व के लिहाज से फीके है. बात सीटों की संख्या की करे या बीजेपी के दिग्गजो की दोनों बिन्दुओ पर बीजेपी को करारा झटका लगा है. इस की टीस कल शाम को पीएम के भाषण में साफ दिखी जब उन्होंने कहा'' बाहरी लोगो के बहकावे में कोई गुजराती ना आये, पिछले दिनों जो हुआ उसे भूल जाओ, हम सब फिर से एक है''. कही न कही सोच पर असर करने वाले ये परिणाम सुखद तो है साथ ही सावधान करने वाले भी.

उदाहरण के लिए हम बात कर रहे है बीजेपी की परंपरागत सीट जुनागड़ की. जूनागढ़ शहर गुजरात का सातवां सबसे बड़ा शहर है. जूनागढ़ में विधानसभा चुनावों के पहले चरण में 9 दिसंबर को मतदान हुआ था. वर्ष 1998 से भाजपा लगातार यह सीट जीतती आ रही थी. बीजेपी उम्मीदवार महेंद्र मशरू अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं. उनके पास ना तो कोई गाड़ी है और ना ही बड़ा बैंक बैलेंस. एक कमरे में रहकर गुजारा करने वाले महेंद्र लाल राजनीति में आने से पहले बैंक में नौकरी करते थे. बीएससी, एलएलबी तक पढ़े महेंद्र लाल ने शादी भी नहीं की है.

खास बात यह है कि बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद उन्हें जो ग्रेच्यूटी फंड मिला उसी पर वे जीवन काट रहे हैं. वे तो यह घोषणा भी कर चुके हैं कि पेंशन भी नहीं लेंगे. महेंद्र लाल ने 1990 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीते भी थे. बाद में वे बीजेपी में शामिल हो गए थे. पर अब ये सादगी लोगो को पसंद नहीं आई.

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