रविवार को होगा ग्रीस के भविष्य का फैसला

ग्रीस : यह तो सभी जान ही गए हैं कि यूरोप के ऐतिहासिक महत्व वाले देश ग्रीस (यूनान) को IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश) ने Defaulter (दिवालिया) घोषित कर दिया है। दुनिया के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि कोई एक बड़ा प्राचीन देश दिवालिया घोषित किया गया है ।  रविवार (5 जुलाई) को ग्रीस में जनमत संग्रह हो रहा है; इस बात के लिए कि ग्रीस को संकट से उबरने के लिए अब और कर्ज जिन शर्तों पर मिल सकता है, उनके लिए ‘हाँ’ कहा जाए या ‘ना’ अर्थात मतदाताओं को दो विकल्पों ‘Yes’ या ‘No’ में से एक को चुनना है ।

रोचक बात यह है कि ग्रीस की सरकार ‘No’ के पक्ष में है । जबकि यह माना जा रहा है कि यदि ग्रीस की जनता ने भी No को चुना तो उसे यूरोपियन महासंघ (EU) से बाहर कर दिया जायेगा । तो एक प्रकार से यह जनमत संग्रह कर्ज़दाताओं की शर्तों पर ही नहीं है; बल्कि यह इस बात को भी तय कर देगा कि ग्रीस EU में रहेगा या नहीं । यह ग्रीस के लिए तो बड़ा एतिहासिक फैसला होगा ही; साथ ही इसके यूरोप एवं दुनिया की अर्थ-व्यवस्था पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे ।

एक नजदीकी मुक़ाबला

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के अनुसार, इस वक्त ग्रीस की जनता इस मुद्दे पर करीब आधी-आधी बंटी हुई है और यह एक ‘क्लोज़ कॉन्टेस्ट’ चुनाव की तरह का करीबी मुक़ाबला रहेगा । भारतीय लोग यदि इस सब घटनाक्रम को अपने परिप्रेक्ष्य से देखें, तो यह सब कुछ बहुत विचित्र या अटपटा सा है । एक निहायत कठिन आर्थिक पेचीदगियों से भरे मामले का फैसला सामान्य जनता को करना है; जिससे देश के भविष्य की दिशा तय होगी ।

गौरतलब है कि ग्रीस में वामपंथी मानी जाने वाली ‘सीरिजा’ पार्टी सत्ता में है । यूरोप में गिने-चुने देश हैं, जहां इस प्रकार के वामपंथी (जो रूस, चीन या भारत के वामपंथ से बहुत अलग है) काफी समय से सरकार चला रहे हैं । इस संकट के बाद से पार्टी और पीएम की लोकप्रियता में गिरावट तो आई है; लेकिन यहाँ प्रश्न पार्टी या व्यक्ति का नहीं है, देश और उसके नागरिकों के हितों का है ।

वामपंथी सरकार की दलीलें  

सरकार व सीरिजा पार्टी का मानना है कि ग्रीस पर से IMF का कर्ज़ पूरा माफ कर दिया जाना चाहिए और/ अथवा उसे संकट से उबरने के लिये बहुत ही आसान शर्तों पर नया कर्ज़ मिलना चाहिए । इसलिए वे जनता से चाहते है कि वह ‘ना’ को चुनें; भलेही इसके कारण ग्रीस यूरोप और बहुत हद तक दुनिया की आर्थिक व्यसथा से अलग ही हो जाए । परंतु यह इतना स्पष्ट मामला नहीं है और ना कहने के कई नुकसान या खतरे भी है । कुल मिलकर यह ग्रीस की जनता के लिए भी बहुत कठिन फैसला है । साथ ही यह पूरी दुनिया के लिए व अर्थशास्त्रियों या उसमें रुचि रखने वालों के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है और कई गहरी सिखों वाली केस स्टडी है ।

 

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