ऐसा क्या हुआ, जो कांग्रेस के पंजे से फिसला कर्नाटक ?

नई दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस के हाथ से जीत बहुत दूर निकल गई है, रुझानों के मुताबिक अकेली भाजपा बहुमत के तरफ बढ़ती दिखाई दे रही है, जबकि कांग्रेस, कर्नाटक में अपना किला बचने के लिए संघर्ष कर रही है. इस चुनावी परिणाम का गहरा असर 2019 लोक सभा चुनाव पर पड़ने वाला है, ऐसे में ये कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी हो सकती है. पीएम मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का दावा 2019 तक पूरा हो सकता है. लेकिन कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाले कर्नाटक में कांग्रेस की हालत इतनी पतली क्यों हो गई ? 

इस बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि  कांग्रेस और बीजेपी दोनों के मैनिफेस्टो में महिलाओं को आरक्षण, युवाओं को शिक्षा और रोजगार के भरोसे जैसे तमाम वादे लगभग एक जैसे ही थे, लेकिन बीजेपी ने कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर उसे घेरने का काम किया और उसमे सफल भी हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चुनावों में बीजेपी की ओर से प्रचार की कमान संभाली. इस दौरान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उनका कदम-दर-कदम साथ दिया. मोदी अपने प्रचार में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सीएम सिद्धारमैया से जुबानी जंग में अकेले लोहा लेते दिखाई पड़े.

वहीं दलित वोटर्स ने भी इसमें अहम् भूमिका निभाई, दलित वोटर्स को कांग्रेस के साथ माना जाता है. इन चुनावों में बहुजन समाज पार्टी का जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना भी कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रहा. कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस में खेमेबाजी भी देखने को मिली. पार्टी में सीएम सिद्धारमैया को खुली छूट देने का विरोध कांग्रेस के कई नेताओं ने छुपे तौर पर किया. टिकट बंटवारे में भी सिद्धारमैया की ही चली. साथ ही कांग्रेस का लिंगायत समुदाय को लुभाने के लिए खेला गया ट्रम्प कार्ड भी भी बेकार निकला, क्योंकि बीजेपी ने इसे समाज को तोड़ने वाला कदम बताकर जनता का समर्थन प्राप्त कर लिया. 

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