तड़पते हैं मचलते हैं

कहीं जब शाम के साये शपक मलकर निकलते हैं तुम्हारी याद के जुगनू मेरी आँखों में जलते हैं दरे अहसास पर जज़्बात जब करवट बदलते हैं कभी वो दर्द बनते हैं कभी अश्कों में ढलते हैं  नशा तारी हुआ केसा फिजायें भी हुईं बोझल मेरे आगोश में आओ सितारे आँख मलते हैं तुम्हें भी याद होगा वो जमाना आशिकी का था किताबों में दबे अक्सर तुम्हारे खत निकलते हैं मोहब्बत की कहानी को जरा अंजाम अब तो दे दो सभी किरदार तन्हा हैं तड़पते हैं मचलते हैं

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