संसद के लिए अपने आप को सजा देने की अग्नि परीक्षा !

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJAC) को असंवैधानिक करार दिया संविधान, कानून, नैतिकता, मर्यादा आदि सिर्फ जनता के लिए होते है उसे तोड़ने पर सजा देना भी संसद का अधिकार है, कानून बनाना सांसदों का काम है व बनाने वाला भगवान होता है इसलिए आप इन सांसदों की बात रहने दो | लोगो को पुराने अधिकांश राजाओ का जिक्र कर हमें आइना दिखाने की जरुरत नहीं की वे इसलिए भूतकाल के काल में बिना इतिहास के साक्षी बने खो गए क्योंकि उन्होंने कानून तो बहुत बनाये पर जब अपनी व अपनों की बारी आई तो पलट गये.

राजा रामचन्द्र, सत्यवादी हरीशचंद्र, वासुदेव श्री कृष्ण, चक्रवती भरत, सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, महाराणा प्रताप, शहन्शा अकबर इत्यादि महान थे क्योंकि वक़्त आने पर इन्होने अपने को व अपनों को भी समान कानून से सजा दी | अब राजशाही तो खत्म हो गई और लोकतंत्र आ गया है यहाँ सामान्यतया राजनेता लोग देश के सिपाही से ज्यादा अपनी-अपनी पार्टी के सिपेसलाहकार कहके घूमते-फिरते है | उच्चतम न्यायालय ने पहले भी कई सरकारों व उसके निर्णयों को असंवैधानिक करार दिया परन्तु उन सरकारों के जाने के बाद, इसलिए मामला दब गया | कई बार तो अदालत के निर्णय से पहले ही पलटी मार दी गई परन्तु इस बार "समय" भी ठहर के सांसदों की अग्निपरीक्षा लिए बिना आगे बढ़ने को तैयार नहीं है. यदि वो आगे बढ़ा अर्थात भविष्य में सजा का समय मुकरर हो चूका | उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJAC) को असंवैधानिक ठहराने के साथ ही पूरी संसद व सभी राजनैतिक दलों से आये संसद दोषी हो गये की उन्होंने मिलकर भारतीय संविधान की धज्जिया उड़ा डाली क्योंकि इस कानून को सर्वसम्मति से पास करा था |

किसी भी कानून को संवेधानिक व असंवैधानिक करार देना उच्चतम न्यायालय का अधिकार है जो सुनवाही के समय सभी को तर्क देने का मौका देता है | उच्चतम न्यायालय का फैसला गलत है या नहीं मंत्री इसे "कुतर्क" कहे या "संसदीय संप्रभुता पर हमला" पर वर्तमान में वह दोषी है और संसद को अपनी सजा स्वयं तय करनी होगी अन्यथा आजादी के बाद से संसद द्वारा अब तक बनाये कानून व लोगो को दी सजाये अमर्यादित हो जायेगी | यदि राजनीति के पिछल्लू वकीलों के तर्कों के आँचल में छिपाने की कोशिश व जनता को इनके ज्ञान से आइना दिखाया गया तो इस लोकतंत्र को बहुत जल्दी ध्वस्त होने से कोई नहीं रोक पायेगा | 

मूलतः यह समस्या है अपने आप को सबसे बड़ा समझने के घमंड एवं नासमझी की | पहले राजशाही में राजा सबको अपने निचे समझता था कोई भी मुद्दा हो वही सर्वोपरि व सर्वज्ञानी की तरह नियंत्रित करता था इसलिए राजशाही पूर्णतया खत्म हो गई | वह अब धीरे धीरे एक-एक करके दूसरी संवेधानिक संस्थाओ से टकराएंगे व इनसे भावनात्मक एवं वैचारिक दृश्टिकोण से पृथक होते जायेगे | 

इस तरह लोकतंत्र में संस्थाए आपस में टकराये नहीं व अदालते अपने आप में, संसद अपने आपमें, मीडिया अपने आप में सर्वेसर्वाह बनके अनैतिक, असंवैधानिक कार्य नहीं करे व संविधान संशोधनों में भी सभी की गरिमा बनी रहे जो मानवीय, वैज्ञानिक एवं नैतिक रूप से ही उचित हो वो हम पहले ही राष्ट्रपति महोदय को सांकेतिक भाषा व ग्राफिक्स के साथ अपने असली टूटने वाली सिरिंज के अविष्कार के साथ चार वर्ष पूर्व ही भेज चुके है |  

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