साउंड प्रोग्रामिंग है रोचक करियर

आज के इस डिजिटल इंडिया के दौर में कंप्यूटर की उपयोगिता को कम आंकना एक बहुत बड़ी भूल साबित हो सकती है, डिजिटलीकरण पुरे विश्व को हर क्षेत्र पर प्रभाव डाल रहा है और आने वाले समय में इस की प्रभुत्वा को मापने का पैमाना ही नहीं रह जाएगा, म्यूजिक और मनोरंजन के क्षेत्र में भी डिजिटल साउंड प्रोग्रामिंग की भूमिका ज़रूरी नहीं अनिवार्य होती जा रही है, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग काफी मेहनत का काम है, पर इसे म्यूजिक से मिला देने पर असीम रोचक संभावनाए खुल कर सामने आ जाती है .

क्या है डिजिटल साउंड प्रोग्रामिंग

प्रोग्राम्ड डिजिटल साउंड कंप्यूटर से ही तैयार किया संगीत होता है, आज कल सभी फिल्मो, टी.वी, रेडियो, पब्स, पार्टीज और लगभग सभी जगह पर होने वाल संगीत इस तकनीक से ही बनाया जाता है, कंप्यूटर बेहतर क्वालिटी और क्लेअरिटी देता है, इसके साथ दुसरे इंस्ट्रूमेंट्स के साथ जोड़ने और विश्लेषण की क्षमता भी देता है, वैसे तो प्रोग्रामिंग C में भी की जा सकती है, पर डिजिटल ऑडियो वर्क स्टेशन सॉफ्टवेयर जैसे logic x pro की मदत से रिकॉर्डिंग, एडिटिंग, मिक्सिंग, फ़िल्टरिंग, टेम्पो पिच सेटिंग, और अनेक ऑपरेशन सिर्फ एक क्लिक पर हो सकते है.

कहा होते है कोर्स

कई शैक्षिक संस्थान साउंड प्रोग्रामिंग और इंजीनियरिंग में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, स्नातक और मास्टर डिग्री देती है जेसे: 

सत्यजी रे फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट कोलकाता,  एशियाई अकादमी ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविज़न नॉएडा,  एसऐइ इंस्टिट्यूट चेन्नई,  फिल्म एंड टेलीविज़न ऑफ़ इंडिया पुएन  स्कूल ऑफ़ परफोर्मिंग एंड विसुअल आर्ट (इग्नू)  देवीप्रसाद गोएंके मैनेजमेंट कॉलेज ऑफ़ मीडिया स्टडीज मुंबई,  नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फिल्म एंड फाइन आर्ट्स कोल्कता,  नालंदा डांस रिसर्च सेन्टर मुंबई,  गवर्नमेंट फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट,  इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी खरगपुर,  मान्यता प्राप्त फ्री ऑनलाइन कोर्स भी उपलब्ध है . 

सैलरी

बड़े शहरों में शुरुवाती सैलरी 20 हजार से 25 हजार तक होती है, अनुभव बढ़ने के बाद तो प्रति प्रोजेक्ट 1 लाख तक तो सकती है . 

स्कोप 

आशीर्वाद स्टूडियो के सुशांत बताते है संगीत की अच्छी परख होना इंडस्ट्री में सर्वमान्य होता है, बढ़ते टेलीविज़न और इंटरनेट के चलन के साथ डिमांड बढ़ी ही है, प्रोजेक्ट विज्ञापन, व्यावासिक संदेश, क्लाइंट मार्केटिंग, साउंड वेबसाइट, शार्ट फिल्म, सांग रिकॉर्डिंग, जिंगल्स, एलबम्स, डबिंग आदि के होते है, कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के कारण पुरानी पीढ़ी के लोग इस की क्षेत्र में नहीं आ सकते पर नई पीढ़ी के बच्चे जिन्हें संगीत में रूचि और कम्पुटर शिक्षा के साथ जरुर इस काम को कर सकते है, भविष्य में एनालॉग और इन्स्ट्रुमेन्टल संगीत पूरी तरह से ख़त्म हो सकता है . डिजिटल प्रोग्रामिंग की मदत से नए ध्वनियो को बनाया जाता है . 

आज कल चल रहे म्यूजिक जैसे हनी सिंह या बादशाह की एलबम्स में होने वाले म्यूजिक को केवल डिजिटल प्रोग्रामिंग की मदत से बनाया जा सकता है, किसी अन्य वाद्य से नहीं, छोटे पैमाने पर स्टूडेंट्स अपने निजी कंप्यूटर से वर्चुअल डीजे और मूवी मेकर सॉफ्टवेयर से शोर्ट फिल्म बनाके youtube पर डाल देते है.

Related News