छत्रपति शिवाजी: शौर्य और बुद्धि का अद्भुत संगम

महाराष्ट्र के ही नहीं अपितु पूरे भारत के महानायक वीर छत्रपति शिवाजी महाराज एक महान कुशल योद्धा और रणनीतिकार थे. जिस समय शिवाजी का जन्म हुआ था, उस समय मुग़लों के अत्याचार के कारण पूरे भारत की हालत वास्तव में बहुत ही चिंतनीय व दारुण हो चुकी थी, चारों तरफ हाहाकार मचा था. एक के बाद एक भारतीय राजा मुगलों के अधीन हुए जा रहे थे. मंदिरों को लूटा जा रहा था, गायों की हत्या हो रही थी , नारी अस्मिता तार- तार हो चुकी थी. ऐसे भयानक समय में शिवनेरी किले में माता जीजाबाई ने वीर पुत्र को जन्म दिया. 

माता जीजाबाई ने बचपन से ही शिवाजी को ऐसी कहानियां सुनाई जिनका असर उनके मन पर पड़ा, शिवाजी की निर्भयता का उदाहरण उनके बचपन से ही मिलने लगा था. उन्होंने बीजापुर में सुल्तान के आगे सिर नहीं झुकाया. बस यहीं से उनकी विजयगाथा प्रारम्भ होने लग गई थी. 16 वर्ष की अवस्था तक आते – आते मुगलों के मन में शिवाजी के प्रति भय उत्पन्न होने लग गया था. बीजापुर दरबार से लौटते समय एक बार उन्होनें रास्ते में एक कसाई का हाथ काट दिया था, जो गायों की हत्या करने के लिये जा रहा था. यह उनकी एक और वीरता- निर्भयता का अनुपम उदाहरण था. 

एक और घटना के अनुसार जब आदिलशाह ने एक अनुभवी और दिग्गज सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी महाराज  को तबाह करने के लिए भेजा ताकि वो क्षेत्रीय विद्रोह को कम कर देवे. दोनों योध्या प्रतापगढ़ किले की तलहटी में एक झोपडी में मिले, यह पहले से ही तय था कि दोनों केवल एक तलवार के साथ आएंगे. लेकिन शिवजी, मुगलों से लड़ते-लड़ते उनकी चालों को भांप चुके थे, इसीलिए शिवाजी पहले से ही अपना एक घातक हथियार "बाघ नकेल" अपने साथ ले आए. मुलाकात के समय वही हुआ, जो शिवाजी ने पहले ही सोच रखा था, अफज़ल खान ने बातचीत के दौरान, शिवाजी की नज़र घूमते ही, उनके पेट में कटार से वार किया, किन्तु शिवाजी के कवच ने उस वार को निष्फल कर दिया, जिसके बाद शिवाजी ने अपना हथियार 'बाघ नकेल' निकालते हुए, अफ़ज़ल पर घातक वार किए जिससे अफ़ज़ल खान वहीं ढेर हो गया. इससे छत्रपति शिवाजी की वीरता के साथ उनकी दूरदर्शिता का भी परिचय मिलता है. युगों-युगों में ऐसी शूरवीर पैदा होते हैं, जिन पदचिन्हों पर चलकर कई पीढ़ियां जीवन संग्राम में सफल होती हैं.   

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