सिंहस्थ कुंभ: 8 हजार से अधिक वैरागी त्यागी साधुओं की तप साधना के होंगें दर्शन

कुछ  ही समय के पश्चात शुरू होने जा रहे इस महापर्व सिंहस्थ कुंभ में बड़े- बड़े सम्प्रदायों के साधू संत उपस्थित होंगें. उनके दर्शन भक्तों को हरसाएँगे व उनके जीवन में प्रकाश डालेगें. इस बार 8 हजार से अधिक वैरागी त्यागी साधु अंकपात मार्ग से लेकर मंगलनाथ क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार की साधना करते नजर आएंगे. इस महापर्व को लेकर साधुओं की साधना शुरू भी हो गई है. मंगलनाथ क्षेत्र टाटंबरी बाबा के आश्रम के शिष्य साधना कर रहे हैं. श्री पंच रामानंदीय निर्मोही अणि अखाड़ा के श्रीमहंत राजेंद्रदास महाराज ने बताया कि इन साधुओं का तप और तपस्या इतना कठोर रहता है. जो हर किसी के बस की बात नहीं उनमें तो ईश्वरी शक्ति होती है.

 जो उन्हें सहनशील और तपस्वी बनाती है . सिंहस्थ के दौरान त्यागी साधुओं में कोई जल साधना में दिखेगा,तो कोई भीषण गर्मी में भस्म लपेट कर जलते कंडों को सिर पर रख साधना करते नजर आएगा.कोई काँटों में , कोई एक पैर से खड़े होकर कोई सर के बल , विभिन्न -विभन्न  रूप से साधुओं की साधन देखने को मिलेगी और इनके इस दर्शन से मानव के भाग्य का उदय होगा .

कुछ इस तरह से करते है साधना -

बहुत से साधु अग्नि साधना, एक पैर पर खड़े रहकर साधना, कांटों पर लेटना-बैठना, एक हाथ ऊंचा कर साधना , जीभ में त्रिसूल लगाकर साधना विभन्न प्रकार से अपनी-अपनी साधना को पूर्ण करते है. इन साधुओं को हठ साधक कहते हैं.हठ साधक वे जो   सोच लेते है उस साधना को पूर्ण करते है. वैष्णव संप्रदाय के वैरागी साधु सुबह शैव साधुओं की तरह भस्म धारण करते हैं. और जटा बढ़ाए रखते है . त्यागी अखाड़े के साधु तेज धूप में अग्नि प्रज्ज्वलित कर तपस्या करते हैं. जो की बहुत कठोर तपस्या होती है .

बताया जाता है कि वसंत पंचमी से त्यागी व महात्यागी संत धूनी रमाना शुरू करते हैं. साधक तीन वर्ष सप्तधूनी यानी सात कंडे रख साधना करते हैं.अगले  तीन वर्ष द्वादश धूनी, जिसमें 12 कंडे रख साधना की जाती है.इसके बाद तीन वर्ष 84 धूनी, जिसमें 84 कंडे आसपास रखकर साधना करते हैं.अंतिम खप्पर धूनी होती है, जिसमें सिर पर खप्पर में कंडे प्रज्ज्वलित कर भीषण गर्मी में साधना करते हैं.

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