अजब-गजब शायरियां

मुझे मालूम है ये ख्वाब झूठे हैं और ख्वाहिशें अधूरी हैं; मगर जिंदा रहने के लिए कुछ गलतफहमियाँ भी जरुरी हैं.

 

शनिवार की रात के बाद इतवार की सुबह आती है. आप हमें याद करें न करें हमें आपकी याद आती है.

 

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था... वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है...!!

 

मै नहीं हूँ बेवफ़ा मेरा ऐतवार कर ले, दे दे मुझे मौत या फिर प्यार कर ले।

 

जो कुछ भी हूं, पर यार, गुनहगार नहीं हूं, दहलीज हूं, दरवाजा हूं, पर मैं दीवार नहीं हूं।

 

बरकत ही तो होती है औरत के कदमों की... दर-ओ-दीवार को लोग घर कहते है...!!

 

कुछ लोग दिखावे की सिर्फ शान रखते हैं...  तलवार रखें या न रखें, म्यान रखते है...!!

 

ये और बात है की जख्मों से दिल्लगी है मुझे.. मगर जो वार तुमने किये है उसकी दाद दूँगी मैं।

 

इसे तूफान ही किनारे से लगा सकता है, मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज़ नहीं...!!

 

है एक कर्ज जो हरदम सवार रहता है...  वो माँ का प्यार है सब पर उधार रहता है...!!

 

सबसे रोमांटिक जगह मेरे घर की दीवार पे टंगी घड़ी है,  जहाँ दोनों कांटे सारा दिन एक दूसरे के पीछे घूमते रहते है !!

 

अब तो इतवार में भी कुछ यूँ हो गयी है मिलावट. छुट्टी तो दिखती है पर सुकून नजर नहीं आता.

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