शायर का आखिरी कलाम

अलविदा आज है दिल से कर दीजिये..!!  शायर का आखिरी कलाम..! दूर नज़रों से सब मिल के कर दीजिये..! अलविदा आज है दिल से कर दीजिये..!! अश्क़ बनकर अभी तक रहा आँख में,  दूर अब उनको पलकों से कर दीजिये..!  सारे अहसास जज्बात और तिश्नगी,बेदखल भी तसव्वुर से कर दीजिये..!! बेजुबां बन के पत्थर जो रहा उम्र भर,  उसे भी अब जुदा खुद से कर दीजिये..!  अब तो नफरत की कोई जरुरत नहीं,उसे रुख़सत मेरे साथ कर दीजिये..!! नाम मेरा गुदा है तुम्हारी कलाई पे जो,  स्याह उसे भी काज़ल से कर दीजिये..!  जख़्म नासूर में एकदिन बदल जाते हैं,दर्द सब दूर सीने के कर दीजिये..!! ख्वाब बनकर कहीं लौट आऊँ न फिर,  गुमशुदा मुझको यादों से कर दीजिये..!  खुशियाँ "वीरान"में ढूँढ लूँगा अगर,ये रस्म पूरी जरा हँस के कर दीजिये..!!

Related News