शायद मेरी किस्मत में नहीं है

सुलग मैं रहा हूँ और सुलगना मेरी किस्मत में है जरा कुछ सर्द होते हैं अंगारे लोग हवा तुझको भी देते हैं छेड़ मेरे जख्मों को भी जाते हैं समाये हैं दिल में आग तू मगर किसी को चैन तुझसे ही मिलता है दबाये हूँ सीने में दर्द बेहिसाब पर सकूँ कोई मेरे लफ्जों से ही पाता है हर रात तेरी नियति है जलना सुबह को राख हो जाना मगर मेरी तो तकदीर ही है दिन रात जलना मगर खाक होना शायद मेरी किस्मत में नहीं है

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