शाम मेरे फसानें में रह गई

एक सूनी शाम मेरे फसानें में रह गई, मैं दूसरो की शम्मा जलाने मे रह गई, गलियों में रूख करने लगी दोपहर की घूप, मैं अपनें साथियों को जगानें में रह गई, वो आकर मेरें गाँव से वापस भी जा चुका था, मैं थी के अपने घर को सजाने में रह गई, वापस हुई तो घर मेरा शोलों की ज़द मे था, मैं मंदिरों मे दीप जलाने में रह गई, दुनिया से सारी जिन्दगी तारूफ ना हो सका, अंजुम मैं खुद को खुद से मिलानें में रह गई!!!!!

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