सात रंगों वाले शिवजी

इस मंदिर की स्थापना थारु जनजाति द्वारा वर्ष 1830 में की गई थी. शिव भक्तों द्वारा एक शिवलिंग को नर्मदा से चकरपुर क्षेत्र के गांव नौगंवनाथ में स्थापित करने के लिए ले जाया जा रहा था. इसी दौरान यह शिवलिंग जंगल के रास्ते में गिर गया. जब लोग नौगांवनाथ गांव पहुंचे तो शिवलिंग को न पाकर भौचक्के रह गए.

बताते हैं कि बाद में गांव वासियों ने शिवलिंग की खोजबीन शुरू कर दी. जिस जगह पर शिव मंदिर स्थापित है. वहां गांव वालों को शिवलिंग पड़ा हुआ मिला. लोगों ने जब शिवलिंग को उठाने की कोशिश की तो वह उठने के बजाए जमीन में और धंसने लगा. नौगंवानाथ में जहां शिवलिंग को स्थापित करने के लिए भूमि चयन की गई थी. इस मंदिर के बारे में यह बताया जाता है कि एक किसान की गाय पास के ही जंगल में चरने जाती थी.

एक स्थान पर खड़ी होकर वह खुद ही दूध देने लगती थी. यह विचित्र समाचार पाते ही एक दिन लोगा ने गाय का पीछा किया तो वह यह नजारा देखकर हैरत में पड़ गए. उस स्थान की सफाई करने पर वहां एक शिवलिंग दिखाई पड़ा। धीरे-धीरे लोगों ने इस शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी, जब रोहिणी नक्षत्र में शिवरात्रि पड़ती है तो यह शिवलिंग सात रंग बदलता है.

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