विज्ञान की कसौटी पर प्रधानमंत्री की भारत को विकसित बनाने की योजना

विज्ञान की कसौटी पर प्रधानमंत्री की भारत को विकसित बनाने की योजना, अच्छे दिन आने वाले चुनावी शिगुफे से बहुमत सरकार बनाके अपने एक के बाद एक मैराथन विदेशी दौरे से सोशल मीडिया व अधिकांश विपक्ष के लोगो को काम पर लगाने वाले प्रधानमंत्री ने पहली बार लोकसभा में बार-बार विदेश यात्रा का कारण बताकर भारत को विकसित बनाने की उनकी भावी योजना का जो राज पहली बार खोला, उसका विज्ञान के आधार पर विश्लेषण बता देगा कि आप कितने विकसित होने वाले है| 

प्रधानमंत्री विदेश में बड़े-बड़े वैज्ञानिकों एवं रिसर्च सेंटरों में जाकर नये-नये आविष्कारों को देख व समझ रहे है उन्हे वे भारत में लाकर यहा के गरीबों, किसानों, मरीजों, आम लोगो का विकास करना चाहते हैं व इसी विकास एवं विदेशी निवेश के सहारे भारत को विकसित देश बनायेगे व दुनिया में अग्रणी होने का झंडा फेरा देंगे| इस प्रकार दूसरे देशों के आविष्कारों के पिछे ही चला जा रहा हैं न कि अपने देश के आविष्कारों के साथ आगे बढा जा रहा हैं|

विज्ञान के सिद्धांत अनुसार किसी के पिछे दौड़कर आप दौड़ में प्रथम नहीं आ सकते अर्थात 100 प्रतिशत के साथ परिणाम प्राप्त करके भी अग्रणी देश नहीं बन सकते हैं | यह पुरी सोच व तरीका वर्षों पूर्व राजा-महाराजाओं के समय का हैं | उस समय वे अपने राज्य की सीमा से बाहर जाते तो विदेश कहलाता था और वहा से नया अविष्कारिक उत्पाद लाकर देश की जनता को देकर उन्हें खुश कर देते थे | यही सोच आजादी के बाद भी चली, सिर्फ़ विदेश का दायरा ज्यादा दूर हो गया | अब प्रधानमंत्री पद पर आये नये व्यक्ति भी कर रहे हैं सिर्फ़ उन्होने बाहर से लाने की रफ्तार बढ़ा दी हैं | 

इन उत्पादों को विदेश की कंपनी अपनी धरती पर बनाये या भारत की धरती पर फैक्ट्री खोलकर, यह नई तकनीक वाले उत्पादों के लिए लगभग एक ही बात हैं| इसमें फर्क पेटेंट,कॉपीराईट के अधिकारों का ही हैं | लाइसेंस, अनुबंध के खेल में पैसा तो विदेशी खजानों में ही जाना हैं व पाबंदी लगाने का चाबुक तो दुसरे देशों के हाथ में ही रहना हैं | पैसे के लालच में सिर्फ़ एक कंपनी को बनाने का अधिकार देना राष्ट्रीयता व मानवता के साथ कुठाराघात करना हैं | इस विकास वाली सोच से जनता का दूरगामी भला नहीं हो सकता हैं इससे सिर्फ़ अमीर लोग ही लाभान्वित हो सकते हैं |

आपको स्विट्जरलैंड "नोवेर्तिज" कंपनी का नाम तो याद होगा जिसने अपने ही कैंसर की दवाई वाले फार्मूले को कॉपी कर दुबारा पेटेंट लेने के आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी| इस कैंसर की दवाई की कीमत दस हजार रुपये थी और भारत में इसे करीबन डेढ़ लाख रुपये में बेचा जाता था| मीडिया व अपनी पार्टी की सरकार कहने वाले नेताओं ने उच्चतम न्यायालय की खूब वाहवाही करी कि अब गरीब जनता को सस्ते में दवाई मिलेगी| अब इन्हे व जिम्मेदार लोगो को कौन समझाए की उनकी सोच व उपलब्ध कराने के इस तरिके से कितने सालों तक जनता को ये दवाई नहीं मिली और कितने इंसनो ने जिंदगी खो डाली व जितनों ने खरीदी उनका कितना शोषण हुआ|

ऐसा ही खेल भौतिकवाद के ऐशो-आराम वाले उत्पादों का हैं जो महंगे दामो पर बाज़ार में बिकते हैं और महँगाई का एक बड़ा कारण भी हैं| नये-नये अविष्कारों को देश में लाना अच्छी बात हैं व लोगो के जीवन स्तर को बढ़ाना सोने पर सुहागा हैं पर इससे देश विकसित होगा. यह संदेह वाली बात हैं क्यूँकि घुमफिर के पैसा तो बाहर ही जाना हैं. बस कुछ पैसो वाले लोगो का जीवन स्तर जरूर सुधर जायेगा| 

इसी खेल को टारगेट करते हुए हमने वैज्ञानिक-विश्लेषण "भारत के हाथ क्या आएगा... इस नई आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में!" हमने लिखा था कि " भारत आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकता." यदि भारत को अग्रणी बनाना हैं तो हमारे अविष्कार "ए डी सिरिंज" पर राष्ट्रपति महोदय के तीन साल से विचाराधीन निर्णय को आने दे पूरा मार्ग ही सामने आ जायेगा और जनता भी इस्तेमाल कर विज्ञान के असली फायदे व विकास को समझ और महसूस कर पायेगी|

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