द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन जरूर पढ़े यह कथा

फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी इस बार 20 फरवरी दिन रविवार को है। आप सभी को बता दें कि य​ह द्विज​प्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi) है। जी दरअसल यह फरवरी की आखिरी चतुर्थी व्रत है और इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी (Lord Ganesha) की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करते हैं, उनकी आरती (Aarti) उतारते हैं और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करते हैं। वहीं रात के समय में चंद्रमा की पूजा करते हैं और जल अर्पित करते हैं, और उसके बाद पारण करके व्रत को पूरा करते हैं।

आप सभी को बता दें कि संकष्टी चतुर्थी व्रत वाले दिन पूजा के समय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए क्योंकि इससे व्रत पूर्ण होता है और पूरा फल प्राप्त होता है। जैसे भगवान गणेश जी ने देवताओं के संकटों को दूर किया था, उस प्रकार ही आपके संकटों का समाधान करेंगे। अब आज हम आपको बताते हैं संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha)।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा- पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवी-देवता संकटों में घिरे हुए थे, तो वे समाधान के लिए भगवान शिव के पास आए। तब उन्होंने भगवान गणेश और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा, तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे इसका समाधान कर सकते हैं। अब शंकर जी दुविधा में पड़ गए। उन्होंने कहा कि जो भी इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, वह देवताओं के संकट के समाधान के लिए जाएगा। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है, वे उस पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। गणेश जी की सवारी मूषक है, उसके लिए मोर की तुलना में पहले परिक्रमा कर पाना संभव नहीं था।

अब शंकर जी दुविधा में पड़ गए। उन्होंने कहा कि जो भी इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, वह देवताओं के संकट के समाधान के लिए जाएगा। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है, वे उस पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। गणेश जी की सवारी मूषक है, उसके लिए मोर की तुलना में पहले परिक्रमा कर पाना संभव नहीं था। उधर भगवान कार्तिकेय जब पृथ्वी की परिक्रमा करके आए, तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित किया क्योंकि गणेश जी को वे वहां पर बैठे हुए देखे। तब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि वे पृथ्वी परिक्रमा क्यों नहीं किए और उनकी परिक्रमा क्यों की? इस पर गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही पूरा संसार है।

इस वजह से उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर दी। गणेश जी के इस उत्तर से भगवान शिव और माता पार्वती बहु​त प्रसन्न हुए। उन्होंने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने को भेजा। साथ ही भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन करेगा और चंद्रमा को जल अर्पित करेगा, उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे। उसके संकटों का समाधान होगा और पाप का नाश होगा। उसके जीवन में सुख एवं समृद्धि आएगी।

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