सामने खड़ी यादोंकी टोली

खुश था मैं, जख्मों को भुलाके।  हंस रहा था, आसूओंको छुपाके। चला जा रहा था  समझौता करके।  जी रहा था,  भोले मन को समझाके। सोचा मैं बहोत दूर आया, बीते पलोंको भुला पाया। किस्मतने ऐसी चाल खेली, सामने खड़ी यादोंकी टोली। अतीतमें छुपी कुछ बातें, फिरसे लौटके गले मिली। कैसे इनसे मुह फेरु मैं? कैसे इन्हे दफ़नाऊँ मैं? ये तो मेरा विभिन्न अंग, ये तो मेरे रूपका एक रंग। ले चलूँ इन्हे साथ अपने, इनसे जुड़े भविष्यके सपने।

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