सखी सावरी मोहे कान्हा दियो

सखी सावरी मोहे कान्हा दियो उपहार, इक दर्पण दियो श्रृंगार करन को,,,,, जो मै जानो श्री कृष्ण को बन संवर के रहियो मन से लगूँ सांवरे को अति प्यारी करूँ दर्पण देख श्रृंगार,, बोली मुस्काती सखी भी दर्पण है तेरे मन का विश्वास जैसो होवै वो ही दिखावै सखी मन को करो जरा साफ नैण मे बसे मोहन दीख जाहे एही कारण दियो उपहार,,,,,

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