क्यूँ हर बेटी को सहनी पड़े सदा सामाजिक मनमानी मत समझो नादान, अच्छे बुरे की पहचान ,हूँ सयानी वैधव्य में मेरा क्या हाथ भला माँ,है बहुत मुझे हैरानी माँ, तुम्हारे आँगन से क्यूँ उठ गया, मेरा दाना पानी तुमने ,मेरा घर सँसार बसाने की , ज़िद मन में ठानी देखो ,विदा की रात ही ,कालग्रस्त हो गया मेरा हानी ये तो बताओ ,क्या तुम सँतुष्ट हो ,देकर मेरी क़ुर्बानी कल तक , जो तुम सब की आँखों का थी , तारा आज अचानक ,अपने ही घर में ,क्यूँ हुई बेसहारा बिंदिया, काजल ,झुमका,पायल ,सब खींच उतारा क्या क़सूर है मेरा माँ ,बोलो ना ,क्यूँ आँखों में पानी मेरा फुदकना ,चहचहाना ,जो था सब को भाता आज अचानक ,क्यूँ छूट गया ,ख़ुशियों से नाता मनहूस कह , क्यूँ हर कोई ,अपने से दूर हटाता कहाँ गई माँ , बताओ ना , वो परियों की रानी मैं तो ,कल भी ,स्वच्छँद तितली सी ,थी विचरती बेटियाँ तो होती हैं माँ ,मन आँगन में ,महकते फूल रहने दो मुझे अपने पास, बुहारूँगी आँगन की धूल इस आँगन के सुख दुख में ,नख से शिख तक समाई हूँ मत समझो माँ बोझ मुझे,तेरी अपनी ही हूँ,नहीं पराई हूँ .... क्या ज़रूरी है माँ कि,फिर से हो मेरा घर निकाला पानी के बुलबुले सा जीवन, कौन बनेगा रखवाला तम से भरे हैं ज़हन जगत में ,क्या देंगे मुझे उजाला मत बनाओ माँ मुझे रूढ़िवादी सँस्कृति का निवाला