सफ़र में तेरे क्या आलम होगा

जीवन के सफ़र में तेरे क्या आलम होगा

पुष्प खिलेंगे या पतझड़ मौसम होगा

तेरे कर्मों की तस्वीर यहाँ पे उभरती है

बस "नीयत" ही नियति निर्धारित करती है

जो देता है तू औरों को दाता बनकर

पुनरावृत्ति जीवन में उसकी हो अक्सर

ये सुख-दुःख बनकर आकर तुझसे मिलती है

बस "नीयत " ही नियति निर्धारित करती है

तेरी राहों के कांटे ये चुन लेती है

तेरे संग तेरे सपने भी बुन लेती है

मंजिल तक धीरे - धीरे संग ही चलती है

बस 'नीयत' ही नियति निर्धारित करती है

तू स्वच्छ हृदय से बस सबका हितकारी बन

ईश्वर की दया कृपा का तू आभारी बन

जिसके आगे ये दुनिया पानी भरती है

बस "नीयत " ही नियति निर्धारित करती है ...

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